child labour india
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नई दिल्ली ।। बचपन का मतलब होता है मौज-मस्ती और खेल-कूद के दिन, जहाँ बच्चा किताबों के माध्यम से ज्ञान अन्वेषण करता है। बाल अवस्था में बच्चा सुख-दुःख से अनजान कभी अपनी किताबों से भरे बस्ते से जूझता है, तो कभी अध्यापक द्वारा दिए गए होमवर्क से, कभी खेल के मैदान में क्रिकेट की गेंद से जूझता है, तो कभी अपने दोस्तों के मनोभावों में बहकर क्रोध का पात्र बनता है। बचपन मासूम होता है, एक बच्चे के लिए उसका घर और स्कूल ही उसका संसार होता है।

जब हम बालिग अवस्था में कदम रखते हैं, तो जीवन यापन करने के नए आयाम ढूँढने लगते हैं। रोजी-रोटी के संसाधनों की प्राप्ति के लिए हम नौकरी करते हैं और मौज-मस्ती के दिन जिम्मेदारी में तब्दील हो जाते हैं। परिवार का उत्तरदायित्व आपके कंधों पर आ जाता है और आप सामाजिक बंधनों से बंध जाते हैं, तब हम अपने बचपन की तरफ तरसी नजरों से देखते हैं और सोचते हैं काश “हम भी अगर बच्चे होते”। 

लेकिन अगर आप से आपकी बाल्यावस्था छीन ली जाए और आप को रोजी-रोटी कमाने के लिए काम करना पड़े, काम क्या आप को मजदूरी करनी पड़े, तो कहाँ रह जाएगा आपका बचपन? खो जाएगी आपकी आजादी और आप की जिंदगी और कालकोठरी के अँधेरे में कहीं गुम हो जाएगी। कुछ ऐसे ही फरियाद भारत के उन बाल मजदूरों की है, जो हमसे यह गुहार कर रहे हैं कि “मत छीनो मुझसे मेरा बचपन”।

आज हमारे देश में एक करोड़ से भी ज्यादा बाल श्रमिक हैं, जो दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक है। यद्यपि हमारा संविधान 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने  का वादा करता है, फिर भी इसके बावजूद आज हमारा देश इस श्राप से ग्रषित है। आज हमारे देश में बाल मजदूर हर क्षेत्र में पाए जाते हैं। बीड़ी के कारखाने, शिल्पकारी, कारीगरी, होटलों, ढाबों और यहाँ तक कि पटाखे बनाने जैसे असुरक्षित कार्यों में भी बाल श्रमिक पाए जाते हैं। लोगों को पता है बाल मजदूरी समाज पर श्राप है, वह इसका विरोध भी करते हैं, परन्तु सिर्फ बोलकर या लिखकर। जमीनी स्तर पर आप जाएं तो सच्चाई कुछ और है। यहाँ तक कि सरकार की बात करें, तो वह बाल मजदूरी के खिलाफ नीतियां बनाती है, परन्तु कितनों का पालन होता है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 24 साल हो गए बाल मजदूरी निषेधाज्ञां और विनियमन कानून को, परन्तु अभी तक स्थिति वही की वही है। आंकड़े बद से बदतर हो गए हैं।

इन बाल-मजदूरों को सहानुभूति की जरूरत नहीं है, बल्कि इनकी समस्या गरीबी के फंदे से जकड़ी है। अतः एक कर्तव्यनिष्ठ सामाजिक व्यक्ति होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम गरीबी के कारणों को समझें और इसे हटाने के प्रयत्न करें।

बाल मजदूरी तभी खत्म हो सकती है, जब इन बाल-मजदूरों को कम वेतन के एवज में अच्छी पढ़ाई मिले, जिससे आगे चलकर वह भी अच्छी नौकरी पाएं या अच्छी जिंदगी के हकदार बन सकें। अच्छी नौकरी का मतलब है, आर्थिक तंगी से निजात जो गरीबी भी खत्म करती है। अगर हम गरीबी से निजात पा लें, तो उससे जुड़ी अनेकों समस्याएं समाप्त हों सकती हैं।

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