कुशीनगर ।। उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर बसे कुशीनगर में गन्ना की नई प्रजातियों के विकास के लिए करोड़ों रुपये की लागत से स्थापित बाबू गेंदा सिंह गन्ना शोध संस्थान वैज्ञानिकों की कमी के कारण बंद होने के कगार पर पहुंच गया है।

केंद्रीय कृषि मंत्री रहे बाबू गेंदा सिंह की पहल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वर्ष 1974 में सेवरही में इस संस्थान की स्थापना का निर्णय लिया था। इसके लिए लगभग 300 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया और वर्ष 1977 में संजय गांधी ने बाबू गेंदा सिंह गन्ना शोध संस्थान का शिलान्यास किया था।

वर्ष 1988 में निदेशक, सहायक निदेशक, वैज्ञानिक, सहायक वैज्ञानिक, प्रयोगशाला सहायक सहित 300 स्टाफ के पद सृजित किए गए जिसमें 133 वैज्ञानिकों की नियुक्ति हुई और काम शुरू कर दिया गया। यही नहीं, करोड़ों रुपयों की लागत से इस केंद्र पर वातानुकूलित प्रयोगशाला, ऑडिटोरियम, प्रशासनिक भवन, वैज्ञानिकों व अफसरों के लिए आवासीय कालोनी का निर्माण हुआ।

इस संस्थान में गन्ना की नई प्रजातियों की खोज शुरू हुई और क्षेत्र में किसानों ने उत्साह से गन्ना का उत्पादन शुरू कर दिया लेकिन कुछ दिनों बाद यहां से वैज्ञानिकों को हटाया जाने लगा।

वर्ष 1997 में शासन ने निदेशक का पद समाप्त कर इस संस्थान को शाहजहांपुर गन्ना शोध संस्थान का अंग बना दिया गया। तब से यहां गन्ना की नई प्रजातियों पर शोध कार्य ठप्प है। यहां कार्यरत 125 वैज्ञानिक अपना स्थानांतरण करा कर दूसरी जगह जाने लगे। अब संस्थान में सिर्फ आठ वैज्ञानिक रह गए हैं। करोड़ों की लागत से बना वातानुकूलित प्रयोगशाला और ऑडिटोरियम अब खंडहर बन गए हैं।

इस सम्बन्ध में बाबू गेंदा सिंह गन्ना शोध संस्थान के सहायक प्रभारी निदेशक डा़ विरेश सिंह का कहना है कि संस्थान में सिर्फ आठ वैज्ञानिक रह गए हैं, जबकि कम से कम 24 वैज्ञानिकों की आवश्यकता है। उनका कहना है कि भवन व पैसे मौजूद हों लेकिन वैज्ञानिक न हों तो गन्ने की नई प्रजातियां कैसे तैयार की जाएंगी? इस केंद्र पर गन्ना की प्रजातियों को यहीं क्रास कराया जाता था, अब इसके लिए कोयम्बटूर जाना पड़ता है।

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