नई दिल्ली ।। ‘रूम 103 नानक पुरा थाना’ उस पुस्तक का नाम है जो घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की भावनाओं के विभिन्न आयाम से परिचित कराती है। किस विद्रूपता के साथ महिलाएं हिंसा का शिकार होती हैं, भयानक संत्रास के उस दौर में उनके मनमस्तिष्क में कैसे विचार आते हैं और कि वह पीड़ा सहती ही क्यों हैं? उनके भीतर भी कुछ कर गुरजने की आकांक्षा हिचकोले खाती है क्या? 

यह बता रही हैं रश्मि आनंद जिन्होंने खुद 10 वर्षो तक घरेलू हिंसा की यातनाएं झेली हैं। और ‘उस जिंदगी?’ से निकलकर इस जिंदगी में आने के बाद पिछले नौ वर्षो से हिंसा पीड़ित महिलाओं को हरसंभव मदद के लिए काम कर रही है। इस पुस्तक की सहलेखक हैं दिल्ली पुलिस की अतिरिक्त उपायुक्त सुमन नलवा जो नानक पुरा थाना में महिलाओं के लिए बनाए विशेष प्रकोष्ठ में कार्यरत हैं। सुमन ने इस पुस्तक में पीड़ित महिलाओं के संदर्भ में पुलिस और कानून का परिप्रेक्ष्य दिया है। 

रश्मि उस महिला का नाम है जिसने विवाह के बाद 10 वर्षो तक घरेलू हिंसा को बच्चों के लिए बर्दाश्त किया लेकिन एक दिन जब उन्हें लगा इस हिंसा की जद में आकर बच्चे न केवल अपनी स्वाभाविकता खो रहे हैं बल्कि रोगग्रस्त होने लगे हैं तो उन्होंने बच्चों की खातिर पति का घर छोड़ने का फैसला कर लिया। 

इस फैसले ने उनकी जिदगी बदलकर रख दी। आज न केवल वह एक सफल इंसान के रूप में अपना जीवन जी रही हैं बल्कि पुलिस के सहयोग से घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं को परामर्श के जरिये अंधेरे बंद कमरे से बाहर उजाले की किरण भी दिखा रही हैं। 

रश्मि अब तक 10 किताबें लिख चुकी हैं। ‘रूम 103 नानक पुरा थाना’ उनकी अद्यतन प्रकाशित पुस्तक है जिसमें उन्होंने निजी अनुभवों के साथ ही घरेलू हिंसा के विभिन्न रूपों को समाज के सामने रखा है। इस पुस्तक में उन्होंने ‘हिंसा का मनोविज्ञान’, विवाह संस्था, धैर्य, घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की सुरक्षा जैसे विषयों को उठाया है। पुस्तक में नौ अन्य पीड़ित महिलाओं की कहानी भी बयां की गई है। जिसके जरिये हिंसा के भिन्न रूपों को समझा जा सकता है। 

देश में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय पाने के लिए किस कदर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है इससे सभी वाकिफ हैं। नानक पुरा थाना में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बना विशेष प्रकोष्ठ किस तरह काम करता है और यहां के अधिकारियों और कर्मचारियों की समस्या सुलझाने की सकारात्मक कार्यशैली को उन्होंने पुस्तक में जिस तरह से पेश किया है वह काबिलेतारीफ है। प्रकोष्ठ का गठन कब, कैसे हुआ और यह किन रूपों और नियमों के तहत पीड़ितों के लिए मददगार साबित हो सकता है, इसका उन्होंने विस्तृत विवरण दिया है। 

और अंत में रश्मि के शब्दों में ‘अगर एक चीज है मनुष्य में जिसकी कोई सीमा नहीं तो वह है प्यार। ..प्यार हम औरों से करते हैं। हमारी जिंदगी हमारे हमसफर से जुड़ी हुई है। हमारे बच्चों से हमारे उन लोगों से जिनके बिना हम अधूरा महसूस करते हैं। हमें उतना करना चाहिए जिससे दूसरों को खुशी और सुख मिले। हमें उतना करना चाहिए जितना करने से हमें खुद को खुशी मिले।’

[संजीव स्नेही]

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