पटना ।। वैदिक परंपरा के अनुसार पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है जब वह अपने जीवनकाल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत पूर्वजों के साथ पितृपक्ष में उनका विधिवत श्राद्ध करे। भारतीय संस्कृति में पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने की आध्यात्मिक व्यवस्था है। पितरों की संतुष्टि के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कार्य को श्राद्धकर्म कहा जाता है।

बिहार के गया को पिंडदान या श्राद्ध के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मोक्षधाम गया में पहले 365 पिंडवेदियां थीं, जिनमें से अब केवल 45 वेदियां ही नजर आती हैं।

विद्वानों का कहना है कि पहले पुत्र अपने पिता को प्रतिदिन एक पिंडवेदी पर पिंड दान करता था जिसमें एक वर्ष लग जाते थे। वेदी का अर्थ यज्ञ कार्य के लिए स्वच्छतापूर्वक तैयार की गई भूमि है।

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म के मुताबिक इन 15 दिनों में अपने पितरों को तर्पण द्वारा जल अर्पित किया जाता है और उनकी मृत्यु की तिथि के दिन श्राद्ध करते हैं। मान्यता है कि पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करने से पितृगण पूरे वर्ष तृप्त और प्रसन्न रहते हैं।

गया में पूरे 15 दिनों तक इन 45 वेदियों पर पिंडदान करना श्रेयस्कर माना गया है परंतु कई लोग समयाभाव या अज्ञानतावश मात्र त्रिदिवसीय, एक दिवसीय या जितने दिनों में पिंडदान कर सकें उतने दिनों तक श्राद्ध-पिंडदान कर विदा ले लेते हैं। कम समय में भी गयापाल पुरोहित फल्गु, विष्णुपद, प्रेतशिला, धर्मारण्य और अक्षयवट वेदियों पर पिंडदान करवाकर यजमानों को सुफल (आर्शीवाद) दे देते हैं।

अखिल भारतीय विद्वत परिषद के मगध प्रमंडल के अध्यक्ष आचार्य लाल भूषण मिश्र ने आईएएनएस को बताया कि गया में 365 वेदियों का उल्लेख कई पुस्तकों में है। उन्होंने दावा किया कि इनमें से 55 वेदियों की खोज कर ली गई है तथा अन्य वेदियों की खोज जारी है। उनका कहना है कि आज भी कुछ वेदियां सामने हैं, परंतु अतिक्रमण या प्राचीन हो जाने के कारण इन पर पिंडदान बंद हो गया है।

उन्होंने कहा कि मधुकुल्य, धृतकुल्य तथा कोटिश्वर महादेव वेदियां आज भी दृष्टिगाोचर हैं परंतु इन पर पिंडदान नहीं किया जाता है। उन्होंने बताया कि जब भगवान ब्रह्मा यहां यज्ञ करने आए थे तब उन्होंने सभी देवताओं को यहां बुलाया था और तभी से यहां पितृकारक ब्रह्मा हैं परंतु अतिक्रमण के कारण उनके स्थान भी सिकुड़ गए हैं।

वे बताते हैं कि गया में तीन प्रकार की वेदियां- दर्शन वेदी, तर्पण वेदी तथा पिंड वेदियां हैं। दर्शन वेदियों का दर्शन किया जाता है जबकि तर्पण वेदियों पर तर्पण और पिंड वेदियों पर पिंड दिया जाता है।

औरंगाबाद के निवासी एवं गया में एक परिवार को पिंडदान कराने आए पंडित महादेव मिश्र कहते हैं कि पिछले तीन पुश्तों से उनके परिवार का यही कार्य है। वह कहते हैं कि प्रतिवर्ष देश और विदेश से लाखों लोग यहां पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान करने आते हैं।

उन्होंने बताया कि यहां अतिक्रमण के कारण ही वेदियों के आसपास जगह सिकुड़ता जी रही है। वह कहते हैं कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पूर्व में लोग यहां पिंडदान के लिए एक वर्ष रुकते थे।

शोधकर्ता डा़ ललिता प्रसाद विद्यार्थी ने भी अपनी पुस्तक ‘उत्तर भारत का एक सांस्कृतिक नगर : गया’ में यहां की 365 वेदियों का जिक्र किया है। पुस्तक में स्पष्ट उल्लेख है कि गया में कलांतर में ये वेदियां विलुप्त होती गई हैं।

[मनोज पाठक]

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