नई दिल्ली ।। हॉकी की सर्वोच्च संस्था विश्व हॉकी महासंघ (एफआईएच) ने भले ही भारत के चैम्पियंस ट्रॉफी की मेजबानी छीन ली है लेकिन वह इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता के नए आयोजन स्थल को लेकर जबरदस्त ऊहापोह में है।


एफआईएच ने कहा है कि वह एक सप्ताह के भीतर नए आयोजन स्थल के नाम की घोषणा करेगा लेकिन इस बात को लेकर शंका है कि उसे इतने कम समय में हर लिहाज से उपयुक्त आयोजन स्थल मिल सके। इसमें वित्तीय पक्ष काफी अहम है।


पाकिस्तान और जर्मनी ने सबसे अधिक बार इस प्रतियोगिता का आयोजन किया है लेकिन इस बार दोनों देश चैम्पियंस ट्रॉफी की मेजबानी को लेकर इच्छुक नहीं दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में एफआईएच ने हॉकी न्यूजीलैंड को सुरक्षित मेजबान के तौर पर तैयार रहने को कहा गया है।


भारतीय हॉकी के बारे में जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ साजू जोसफ के मुताबिक ऐसे में जबकि न्यूजीलैंड हॉकी की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है, बहुत सम्भावना है कि चैम्पियंस ट्रॉफी इस देश में न खेला जाए।


जोसफ ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा, “एफआईएच ने भारत से चैम्पियंस ट्रॉफी की मेजबनी क्यों छीनी, यह साफ नहीं है। उसने कहा है कि वह भारतीय हॉकी की राजनीति से नाराज है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। ऐसा होता तो फिर एफआईएच ने बढ़-चढ़कर भारत में 2010 में विश्व कप का आयोजन नहीं कराया होता।”


“उस वक्त भारतीय हॉकी की कमान हॉकी इंडिया (एचआई) के हाथों में थी लेकिन एचआई को सम्भालने वाले अधिकारी संवैधानिक रूप से चयनित नहीं थे। एफआईएच ने बार-बार एचआई और खेल मंत्रालय से विश्व कप से पहले चुनाव कराने को कहा था लेकिन ऐसा नहीं हो सका था। इसके बावजूद भारत में विश्व कप हुआ था।”


मौजूदा समय में मलेशियाई हॉकी अकादमी में कोच पद पर कार्यरत जोसफ का मानना है, “विश्व कप जितना सफल रहा था, उसे देखते हुए ही एफआईएच ने भारत में चैम्पियंस ट्रॉफी कराने का फैसला किया था क्योंकि उसे उम्मीद थी कि इससे न सिर्फ एशियाई हॉकी को फायदा होगा, बल्कि उसे बड़े-बड़े प्रायोजक भी मिलेंगे।”


“एफआईएच के प्रमुख लियोनाद्रो नेगरे और भारतीय खेल मंत्री अजय माकन के बीच 13 सितम्बर को बातचीत होनी है। बहुत सम्भावना है कि इस बातचीत का सकारात्मक निष्कर्ष निकले और चैम्पियंस ट्रॉफी दोबारा भारत में लौट आए। मेरे लिहाज से यही फैसला एफआईएच के हक में होगा।”


ऐसा कहा जा रहा है कि एफआईएच विश्व कप के आयोजन से हुई कमाई का अपना हिस्सा उपलब्ध नहीं कराए जाने से हॉकी इंडिया से नाराज है। यह राशि पांच लाख डॉलर के करीब है। इस दिशा में नेगरे और माकन के बीच होने वाली बातचीत के दौरान सकारात्मक हल निकल सकता है।


एफआईएच अच्छी तरह जानता है कि उसे चैम्पियंस ट्रॉफी या फिर किसी अन्य बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजन के लिए नई दिल्ली से बेहतर जगह नहीं मिल सकता। इसका कारण यह है कि भारत की राष्ट्रीय राजधानी होने के खातिर नई दिल्ली सुरक्षा के लिहाज से भी उपयुक्त है और फिर यहां प्रायोजकों की भीड़ है।


जोसफ के अनुसार, “नई दिल्ली हॉकी का गढ़ है। मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में 2010 में हुए विश्व कप और राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हॉकी स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। प्रायोजकों की भी भीड़ थी और मीडिया कवरेज भी शानदार था। एफआईएच को भला इससे बेहतर प्लेटफार्म और कहां मिल सकता है।”


जोसफ ने कहा कि ध्यानचंद स्टेडियम के करीब स्थित दिल्ली उच्च न्यायायल के बाहर बीते दिनों हुए बम विस्फोट के बाद एफआईच सुरक्षा को लेकर भले ही कुछ चिंतित हो लेकिन 2010 विश्व कप और राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान सुरक्षा के ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए उसे इस मसले को लेकर मनाना कोई बड़ी बात नहीं होगी।


बकौल जोसफ, “सुरक्षा कोई मसला नहीं है। भारत सरकार किसी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन के दौरान पुख्ता सुरक्षा मुहैया कराने में पूरी तरह सक्षम है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि नेगरे इस मसले को ज्यादा तूल देना चाहेंगे। माकन से बातचीत के दौरान वह बकाया राशि के भुगतान को लेकर भी ज्यादा बात नहीं करना चाहेंगे क्योंकि वह जानते हैं कि पांच लाख डॉलर कोई बड़ी रकम नहीं है।”


“मेरे लिहाज से बातचीत भारतीय हॉकी के संवेधानिक ढांचे के इर्द-गिर्द घूमेगी और इसे लेकर माकन भी पूरी तैयारी कर चुके होंगे। ऐसे में मेरा मानना है कि एफआईएच भारत से सही मायने में चैम्पियंस ट्रॉफी की मेजबानी छीनने की भूल नहीं करना चाहेगा।”


[जयंत के. सिंह]

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