नई दिल्ली ।। हथकरघा उद्योग को दोबारा खड़ा करने की जद्दोजहद करने वाली डिजाइनर मधु जैन बीते 25 साल से उम्दा शिल्प को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही हैं। वह महसूस करती हैं कि इसके लिए भारतीय उपभोक्ताओं को जागना होगा और ‘विदेशी’ को छोड़कर स्वदेशी के विषय में सोचना होगा ताकी देश की वस्त्र परम्पराएं बची रह सकें।

मधु ने आईएएनएस से एक साक्षात्कार में कहा, “मैं भारतीय कला व शिल्प से हमेशा जुड़ी रही हूं और मुझे महसूस होता है कि यदि हम भारतीय शिल्पकारों को मौका नहीं देंगे तो यहां की बुनाई एवं वस्त्र शिल्प हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। बुनकरों में अचानक ही 60 प्रतिशत की कमी आ गई है। यदि डिजाइनर उन्हें अच्छा मंच उपलब्ध कराएं तो उन्हें भी इसका अच्छा लाभ मिलेगा, नहीं तो ये हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे।”

उन्होंने कहा, “भारतीय उपभोक्ताओं को अपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। उन्हें ‘विदेशी’ की बजाए ‘स्वदेशी’ के सम्बंध में सोचने की जरुरत है। जब केट मिडिलटन ने विवाह किया तो उन्होंने अपने विवाह की पोशाक डिजाइन करने के लिए ब्रिटिश डिजाइनर सराह बर्टन को चुना। इससे स्पष्ट है कि लोग उन्हें आगे बढ़ाने का सचेत प्रयास करते हैं जो उनके देश के होते हैं।”

दिल्ली की डिजाइनर मधु बीते दो दशक से भी लम्बे समय से भारतीय बुनकरों के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने गोटा हथकरघा, बनारसी ताने-बाने पर काम किया है और उनके इस काम को काफी प्रशंसा भी मिली है। वह देश से सबसे पुराने शिल्प चिकनकारी, ब्लॉक प्रिंटिंग, पश्चिम बंगाल की लोक कला नक्सी कांथा और अन्य को भी सहेजने का प्रयास कर रही हैं।

मधु के मुताबिक सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि न केवल खरीददार बुनकरों की अनदेखी कर रहे हैं बल्कि डिजाइनर भी उनके काम को नजरअंदाज कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, “हमारे यहां कहा जाता है ‘घर की मुर्गी दाल बराबर!’, यही वजह है कि यहां के बुनकरों को उतना महत्व नहीं मिलता। यह एक त्रासदी है कि उनके परम्परागत कौशल, उत्तम व श्रमसाध्य काम को भारत में उतना महत्व नहीं मिलता जितना कि मिलना चाहिए।”

मधु ने कहा, “इन दिनों भारतीय कला व शिल्प को खरीदने में किसी की रुचि नहीं है। देश में केवल पांच प्रतिशत डिजाइनर ही ऐसे हैं जो यहां से समृद्ध शिल्प व उसके इतिहास को जानते हैं।”

[निवेदिता शर्मा]

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