भुवनेश्वर ।। ओडिशा में यदि अधिकारियों ने सतर्कता का परिचय दिया होता तो हीराकुंड बांध के पानी से आई बाढ़ को रोका जा सकता था। ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। इस बाढ़ में करीब 22 लोग मारे गए और 20 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए।
भारी बारिश और महानदी पर निर्मित हीराकुंड बांध के जलाशय से पानी छोड़े जाने के कारण निचले इलाकों में स्थित राज्य के 30 जिलों के 4,000 गांव बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हो गए। बाढ़ की वजह से 24,429 घर तबाह हो गए।
छत्तीसगढ़ इलाके में अत्यधिक बारिश के कारण इस वर्ष हीराकुंड बांध के 59 फाटकों को खोलना पड़ा था, जिसमें से 39 तो महज 48 घंटों के दौरान खोले गए।
नागरिक संगठनों के संघ ‘वाटर इनीशिएटिव्स ओडिशा’ के संयोजक रंजन पांडा ने आईएएनएस से कहा, “अगर अधिकारी बांध में कम पानी रखते तो भारी मात्रा में पानी छोड़ने से बचा जा सकता था।”
सरकार का कहना है कि बांध के उपरी जलग्रहण क्षेत्रों में भारी बारिश एवं छत्तीसगढ़ द्वारा पानी छोड़े जाने के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि अधिकारियों को मौसम एवं वर्षा की सम्भावना को ध्यान में रखकर पानी छोड़ना चाहिए था।
पांडा ने कहा कि नियमों के अनुसार एक अगस्त तक जलाशय में 590 फीट जल स्तर रहना चाहिए लेकिन इस बार इस तिथि तक जलस्तर 607.27 फीट था। बांध के नजदीक जलाशय की कुल क्षमता 630 फीट है।
पांडा ने कहा, “बाढ़ की भयावहता का कारण हीराकुंड बांध का अप्रबंधन था और नीति नियंताओं को इस ओर शीघ्र ध्यान देना चाहिए।”
राज्य के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री ने इन आरोपों से इंकार करते हुए कहा, “बांध के इंजीनियरों ने निर्धारित निर्देशों के अनुसार ही कार्रवाई की।”
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता एवं पूर्व जल संसाधन मंत्री बिजॉय महापात्रा ने कहा, “सरकार उद्योगों के लिए पानी संग्रहित कर रही थी।”
कांग्रेस के राज्य प्रमुख निरंजन पटनायक ने कहा, “बाढ़ मानवजनित थी। अगर सरकार ने समय पर कार्रवाई की होती तो इससे बचा जा सकता था।”
एक अध्ययन के मुताबिक बांध के जलाशय में उद्योगों के लिए 1997 तक प्रतिवर्ष 3,191,200 गैलन पानी आवंटित था, जिसे पिछले नौ वर्षो के दौरान 27 गुना बढ़ा दिया गया है।
[जतींद्र दास]