मुम्बई ।। प्रख्यात गजल गायक जगजीत सिंह ने अपनी मखमली आवाज के जरिए गजलों को नया जीवन दिया। वह अपने जीवन के 70वें साल का जश्न अनोखे ढंग से मनाना चाहते थे। उनकी इस साल 70 संगीत समारोहों में शिरकत करने की हसरत थी लेकिन सोमवार को अपने निधन से पहले तक वह केवल 46 संगीत समारोहों में ही शामिल हो सके थे।

सिंह ने पंडित छगनलाल शर्मा और उस्ताद जमाल खान से संगीत की शिक्षा ली थी। उनकी गजल व भजन गायन की अलग शैली ने उन्हें बहुत जल्दी जाना-पहचाना नाम बना दिया, 70 व 80 के दशक में उनकी ताजगी से भरी आवाज को खूब लोकप्रियता मिली। उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

राजस्थान के एक सिख परिवार में आठ फरवरी, 1941 को जन्मे सिंह ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर किया था। वह 1965 में एक गायक के तौर पर काम की तलाश में मुम्बई आकर बस गए।

यह एक संघर्ष था। उन्होंने शुरुआती दिनों में एक गायक के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए छोटी-छोटी संगीत सभाओं, लोगों के घरों में आयोजित संगीत समारोहों और फिल्मी पार्टियों में गजल गायकी की। उनके लिए यह रोजमर्रा की बात थी लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं खोई।

साल 1967 में उनकी गायिका चित्रा से मुलाकात हुई। दो साल के मेलजोल के बाद दोनों ने विवाह कर लिया। उन्होंने साथ में कई सफलतम एलबमें पेश कीं। इनमें ‘एकैस्टेसीज’, ‘ए साउंड एफेयर’, ‘पैशन्स’ और ‘बियोंड टाइम’ एलबम शामिल हैं।

दोनों ने 1990 में अपने बेटे विवेक की 21 साल की उम्र में मौत होने से पहले साथ में अनेक गजलें गाईं लेकिन बेटे की मौत के बाद चित्रा ने गाना बंद कर दिया।

वर्ष 1987 में सिंह ने अपनी डिजीटल सीडी एलबम ‘बियोंड टाइम’ रिकॉर्ड की। यह किसी भारतीय संगीतकार की इस तरह की पहली एलबम थी।

उन्होंने ‘अर्थ’, ‘साथ साथ’ और ‘प्रेमगीत’ जैसी फिल्मों में भी गीत गाए। उनकी ‘होठों से छू लो तुम’ (‘प्रेमगीत’), ‘तुमको देखा तो ये ख्याल आया’ (‘साथ साथ’), ‘झुकी झुकी सी नजर’ (‘अर्थ’), ‘होश वालों को खबर क्या’ (‘सरफरोश’) और ‘बड़ी नाजुक है’ (‘जॉगर्स पार्क’) जैसी फिल्मी गजलों ने उनकी मौजूदगी को और भी मजबूत बनाया।

उनकी गैर फिल्मी एलबम्स में ‘होप’, ‘इन सर्च’, ‘इनसाइट’, ‘मिराज’, ‘विजन्स’, ‘कहकशां’, ‘लव इज ब्लाइंड’, ‘चिराग’, ‘सजदा’, ‘मरासिम’, ‘फेस टू फेस’, ‘आईना’ और ‘क्राई फॉर क्राई’ काफी सफल रहीं।

उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं पर आधारित दो एलबमें ‘नई दिशा’ (1999) और ‘सम्वेदना’ (2002) भी निकालीं। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह निर्माताओं के पैसे को ज्यादा तवज्जो देने के चलते फिल्मी गायकी से दूर हो गए थे।

[राधिका भिरानी]

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