पामपोर (कश्मीर) ।। दक्षिणी कश्मीर के खेतों में जब भी केसर के बैंगनी फूल खिलते हैं, लोगों को 500 साल पुरानी एक प्रेम कहानी याद आ जाती है, जो इन्हीं खेतों के बीच परवान चढ़ी। लेकिन केसर उत्पादन में जम्मू एवं कश्मीर की पुरानी शान को लौटा पाना उत्पादकों के लिए कड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

दक्षिणी कश्मीर में सैकड़ों परिवारों की आजीविका केसर पर निर्भर है, लेकिन आज न केवल इसका उत्पादन घटा है, बल्कि मुनाफा भी नाम मात्र का रह गया है। उच्च गुणवत्ता वाले केसर का उत्पादन स्पेन और कश्मीर में ही होता है। लेकिन पिछले कई साल से कश्मीर में इसका उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

केसर की फसल उगाने वाले मोहिउद्दीन (54) ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “यह मुख्य रूप से फसल में लगने वाली बीमारियों और कुछ व्यापारियों द्वारा अधिक मुनाफे के लिए उत्पादन में मिलावट के कारण हो रहा है।”

वहीं, एक अन्य केसर उत्पादक अब्दुल राशिद (45) ने इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि वह घाटी की इस धरोहर फसल के प्रति उदासीन है।

नवम्बर-दिसम्बर में जब भी केसर की फसल में बैंगनी फूल खिलते हैं, 16वीं सदी के शाही घुड़सवार- कश्मीर के महाराज युसुफ शाह चाक और हुस्न की मल्लिका जून की प्रेम कहानी लोगों की जेहन में ताजा हो जाती है, जो केसर के खेतों में ही मिले और पहली ही नजर में एक-दूसरे के प्रेम में गिरफ्तार हो गए।

राज्य में केसर के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पिछले साल नवम्बर में राष्ट्रीय केसर मिशन की घोषणा की गई थी। 3.76 अरब रुपये के इस मिशन का उद्देश्य केसर उत्पादकों को नवीन कृषि तकनीक, फसल में लगने वाली बीमारियों की रोकथाम, प्रबंधन, बेहतर सिंचाई व्यवस्था आदि उपलब्ध कराना है, ताकि केसर उत्पादन के क्षेत्र में राज्य की खोई शान फिर से प्राप्त की जा सके।

वहीं, पुलवामा जिले के गोहरपोरा गांव में अपनी खेतों में केसर उगाने वाले अली मुहम्मद का कहना है, “10 ग्राम शुद्ध केसर की कीमत 1,000 रुपये है। लेकिन जब तक सख्ती से गुणवत्ता को नियंत्रित नहीं किया जाता, कश्मीर में केसर खरीदने वालों का विश्वास बहाल नहीं किया जा सकता।”

केसर उत्पादक संघ के महासचिव अब्दुल मजीद वनी ने आईएएनएस से कहा, “राज्य में पिछले साल केसर का उत्पादन 6,000 किलोग्राम हुआ, जबकि इस बार यह 5,500 किलोग्राम से भी कम हो सकता है। राष्ट्रीय केसर मिशन कुछ खेतों पर ही लागू है।”

[शेख कय्यूम]

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