प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शनिवार को देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय एकता परिषद [एनआईसी] की बैठक हुई। दिल्ली हाई कोर्ट बम ब्लास्ट के साये में हो रहे इस बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था, लेकिन इस बैठक से पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने स्वयं को दूर रखा।


देश में सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों की श्रेणी में प्रथम और दूसरे स्थान पर आने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक से दूर रहे। इनके अलावा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता भी बैठक से दूर रहीं।


कहा जा रहा है कि इन मुख्यमंत्रियों की अपनी-अपनी नाराजगी है, जिसके कारण ही इन्होंने स्वयं को एनआईसी की बैठक से दूर रखा है।


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी केद्र के इस रवैये से नाराज हैं कि राज्य सरकार की राय जाने बगैर गुजरात की राज्यपाल कमला बेनिवाल ने केंद्र के इशारे पर राज्य के लिए लोकायुक्त की नियुक्त कर दी। केंद्र की यूपीए सरकार ने इस पूरे प्रकरण पर जिस तरह का रूख अपनाया, उससे नरेंद्र मोदी बेहद आहत और कुपित हैं।


इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा जो साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक का बिल लाया जा रहा है, उसके कारण भी मोदी ने इस बैठक से स्वयं को दूर रखा है। गौरतलब है कि भाजपा इस बिल का पूरे जोर-शोर से विरोध कर रही है। भाजपा का कहना है कि यह विधेयक हिंदू विरोधी है और साथ ही राज्य सरकारों को कमजोर करने की साजिश के तहत इसे लाया जा रहा है।


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अंदर ही अंदर सांप्रदायिक विधेयक का विरोध कर रहे हैं। इसी विरोध में सुशासन बाबू ने इस बैठक का बहिष्कार किया है। गौरतलब है कि बिहार में जनता दल युनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार है और भाजपा इस विधेयक का विरोध कर रही है। ऐसे में नीतीश द्वारा गठबंधन धर्म निभाना अहम हो जाता है।


बिहार के प्रति केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा दिखाए जा रहे बेरूखी के कारण भी नीतीश नाराज हैं। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग नीतीश लगातार करते आ रहे हैं, लेकिन केंद्र की यूपीए सरकार उनकी बातों को मानने के लिए तैयार नहीं है। नीतीश ने राज्य के बाढ़ प्रभावित कोशी क्षेत्र के विकास के लिए राज्य के मद में अधिक राशि आवंटित किये जाने का अनुरोध किया था, जिस मनमोहन सरकार ने अनदेखा कर दिया।


नीतीश केंद्र सरकार पर लगातार आरोप लगाते आ रहे हैं कि केद्र सरकार बिहार के विकास में रोड़ा अटका रही है। मनमोहन बिहार के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं। खासकर तब, जबकि पश्चिम बंग के विकास के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की जा चुकी है।


तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जलललिता केंद्र सरकार द्वारा लाये जा रहे सांप्रदायिक विधेयक का विरोध कर रही हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को भी पत्र लिखकर इस विधेयक का विरोध करने के लिये कहा है।


बहरहाल, दोनों मुख्यमंत्रियों ने किन कारणों से राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक से स्वयं को दूर रखा है, स्पष्ट नहीं हो सका है, लेकिन यह बात तो तय है कि दोनों ही केंद्र सरकार से अपनी नाराजगी का प्रदर्शन करना चाहती थीं और इसके लिए इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था। मायावती वैसे भी केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार और अपने राज्य में राहुल गांधी के राजनीतिक कार्यक्रमों से नाराज हैं।


उधर, पश्चिम बंग की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब से राज्य की मुख्यमंत्री बनी हैं, तभी से दिल्ली का रास्ता भूल चुकी हैं। तृणूमल कांग्रेस ने भी सांप्रदायिक बिल का विरोध करते हुए कहा है कि इससे देश की एकता को खतरा हो सकता है। ऐसे में ममता का एनआईसी में भाग न लेना स्वभाविक था। संभव है केंद्र पर दबाव बनाये रखने के उद्देश्य से भी उन्होंने अपने आप को राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक से दूर रखा हो। आक्रामक ममता राज्य में कमजोर हुए वामपंथियों को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहती हैं और इसके लिए उनको केंद्र से लगातार समर्थन की दरकार है।


[नीतीश कुमार भारद्वाज]

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