कोलकाता ।। महंगाई मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने में जुटे लोगों की भी कमर तोड़ रही है। प्रतिमाओं के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों की आसमान छूती कीमत ने कारीगरों को परेशान कर रखा है। साथ ही वे कामगारों की कमी से भी जूझ रहे हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में श्रमिक दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।

अधिक लागत और श्रमिकों की कमी ने पश्चिम बंगाल के कोलकाता में कुम्हारों की परम्परागत कॉलोनी कुम्हरटोली को बुरी तरह प्रभावित किया है, जहां से हर साल करीब 5,000 दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण होता है। कुम्हारों का कहना है कि लकड़ी, बांस, पुआल, पेंट और इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़ों की कीमत बहुत बढ़ गई है।

कुम्हरटोली क्षेत्र विकास एवं अधिकार संरक्षण समिति के प्रमुख सचेतक अपूर्बा पॉल ने आईएएनएस से कहा, “पिछली बार की तुलना में इस बार कच्चे माल की कीमत में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसने हमारे व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित किया है।”

एक अन्य कारीगर राम पॉल (44) ने भी कहा, “क्या आप सोच सकते हैं कि पिछले साल हमने जो बांस का टुकड़ा 50 रुपये में खरीदा था वह इस साल 150 रुपये का हो गया है?”

मूर्ति निर्माताओं का कहना है कि बढ़ी कीमत के कारण अच्छी गुणवत्ता के पुआल भी उनकी पहुंच से बाहर हैं। कुम्हरटोली कारीगर संघ के सहायक सचिव भबेश पॉल ने कहा कि कारीगरों को मूर्तियां बेचकर लाभ नहीं मिल रहा है, क्योंकि इनकी कीमत लागत के अनुरूप नहीं है।

उनके मुताबिक, “साहूकारों और बैंकों से कारीगरों का ऋण बढ़ रहा है। वे पैसा चुकाने में अक्षम हैं। बैंक बार-बार नोटिस भेज रहे हैं। इनमें से कुछ का मामला अदालत तक पहुंच गया है।”

फाइबरग्लास की दुर्गा प्रतिमाओं की लागत भी बढ़ गई है। अमेरिका और कनाडा में इस बार अपने ग्राहकों को दुर्गा प्रतिमा भेजने वाले गोपाल चंद्र पॉल ने कहा, “फाइबरग्लास की दुर्गा प्रतिमाओं के लिए कच्चा माल पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत, जबकि श्रमिकों का मेहनताना 50 फीसदी तक बढ़ गया है।”

पिछले साल विदेशों में एक लाख रुपये की एक प्रतिमा बेची गई थी। इस बार एक प्रतिमा 1.5 लाख रुपये में बेची गई है, लेकिन लाभ में कोई परिवर्तन नहीं आया है।

इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में बड़े पैमाने पर मजदूरों का पलायन भी कारीगरों के समक्ष एक अहम चुनौती है। दुर्गा पूजा से पहले इस सीजन में कुम्हरटोली को 4,000 कामगारों की आवश्यकता होती है, लेकिन इस बार केवल 3,000 कामगार ही उपलब्ध हैं।

अपूर्बा के अनुसार, “जून-जुलाई के दौरान बड़ी संख्या में कामगार गणेश, दुर्गा, शेरावाली की प्रतिमाएं बनाने के लिए महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार का रुख कर लेते हैं।”

इसके अतिरिक्त महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत काम में लग जाने के कारण भी मूर्ति निर्माताओं को मजदूर नहीं मिल रहे।

[मिथुन दासगुप्ता]

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