काठमांडू ।। नेपाल में करीब एक दशक तक चले गृहयुद्ध को समाप्त हुए पांच साल बीत गए हैं, लेकिन अब भी सैकड़ों लोग लापता हैं। इस दौरान लोगों को प्रताड़ित करने और उन्हें पलायन के लिए मजबूर करने वालों को भी अब तक सजा नहीं हुई है।
यहां मंगलवार को लापता लोगों के लिए आयोजित अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तथा नेपाल के अग्रणी मानवाधिकार संगठनों ने माओवादियों के नेतृत्व वाली नेपाल की नई सरकार से लापता लोगों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच आयोग गठित करने और इससे सम्बंधित नियमों के मसौदे में अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार परिवर्तन करने की अपील की।
यूरोपीय संघ, स्विट्जरलैंड, नार्वे, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और अमेरिका की ओर से जारी संयुक्त बयान में कहा गया है, “इससे न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हजारों लोगों में उम्मीद जगेगी।” अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रास समिति के अनुसार, नेपाल में 1996 से शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान 1,300 से ज्यादा लोग लापता हो गए थे। इनमें सरकारी सुरक्षाबलों और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, दोनों के पीड़ित शामिल हैं। नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हालांकि लापता लोगों की संख्या 835 बताई है।
उधर, दो बड़े मानवाधिकार संगठनों, एडवोकेसी फोरम और इनफॉर्मल सेक्टर सर्विसेज सेंटर (इनसेक) ने कहा है कि नए प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई और उनकी पार्टी ने गृहयुद्ध के दौरान अपराध के लिए दोषी पाए गए लोगों का मामला वापस लेने के लिए तराई क्षेत्र के पांच दलों के साथ समझौता किया है।
इनसेक के प्रमुख सुबोध पेयाकुरेल ने कहा, “पीड़ितों के अतिरिक्त किसी को भी दोषियों को क्षमा करने का अधिकार नहीं है।” दोषियों को क्षमा करने वाले कदम से लापता लोगों के परिजनों में गुस्सा और नाराजगी बढ़ रही है। लापता लोगों के परिवारों के लिए नेशनल नेटवर्क के अध्यक्ष रामकुमार भंडारी ने कहा, “दोषियों को क्षमा करने से नेपाल में शांति कायम नहीं होगी।”
नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने जून 2007 में सरकार को एक नया कानून बनाने के लिए कहा था, जिसके तहत लोगों को पलायन के लिए मजबूर करने को आपराधिक श्रेणी में लाया जा सके। साथ ही लापता लोगों के बारे में पता लगाने के लिए उच्चस्तरीय जांच आयोग गठित करने के लिए भी कहा था। लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया।