नई दिल्ली ।। किसी व्यवस्था में छेद होने से पहले हमारे विचारों में छुद्रता आती है और इस वैचारिक छुद्रता का अर्थ यह होता है कि हमारे पतन की उल्टी गिनती शुरू। पतन के इस क्रम में हमने ओजोन की उस छतरी को भी छलनी बना डाला है, जो सूरज की खतरनाक किरणों से हमें अब तक बचाती रही है। चिंता की बात यह कि अब यह छेद हमारे अस्तित्व के लिए अंतहीन सुरंग बनने की ओर बढ़ चला है।

नासा के औरा उपग्रह से प्राप्त आंकड़े के अनुसार ओजोन छिद्र का आकार 13 सितंबर, 2007 को अपने चरम पर पहुंच गया था, कोई 97 लाख वर्ग मील के बराबर। यह क्षेत्रफल उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी अधिक है। 12 सितंबर, 2008 को छेद का आकार और बढ़ गया।

सूरज से निकलने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणें हमारे अस्तित्व को छेद रही हैं। लेकिन इसके लिए कोई और नहीं, खुद हम जिम्मेदार है। आज हमें त्वचा कैंसर, त्वचा के बूढ़ा होने और आंखों की खतरनाक बीमारियों के खतरों से दो-चार होना पड़ रहा है। ओजोन क्षरण के कारण प्रति वर्ष दुनिया भर में मेलेनोमा के 130,000 से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं और 66,000 लोग प्रति वर्ष स्किन कैंसर से मारे जा रहे हैं।

दरअसल, ओजोन क्षरण के लिए जिम्मेदार है, क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस और खेती में इस्तेमाल किया जाने वाला पेस्टीसाइड मेथिल ब्रोमाइड। रेफ्रीजरेटर से लेकर एयरकंडीशनर तक क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस पर निर्भर हैं, और हम इन उपकरणों पर। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि दोनों के उत्पादन और इस्तेमाल पर आज से पूर्ण प्रतिबंध भी लगा दिया जाए, तो भी ओजोन क्षरण की समस्या बनी रहेगी। क्योंकि वातावरण में पहले से मौजूद दोनों तत्वों की सफाई का कोई तरीका अभी तक नहीं इजाद हो पाया है और यह गैस तो अगले 100 सालों तक वातावरण में बनी रहेगी। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि क्या सीएफसी पर पूर्ण प्रतिबंध संभव भी है?

मोट्रियल प्रोटोकाल से जुड़े 30 देशों ने सीएफसी के इस्तेमाल में कमी लाने पर सहमति जताई है। लेकिन यह कमी कितनी होगी, इसका कोई आंकड़ा स्पष्ट नहीं है। वर्ष 2000 तक अमेरिका तथा यूरोप के 12 राष्ट्र सीएफसी के इस्तेमाल और उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर सहमत हो गए थे। इसे एक बड़ी उपलब्धि मानी गई थी, क्योंकि ये देश दुनिया में उत्पादित होने वाले सीएफसी का तीन चौथाई हिस्सा पैदा करते हैं। लेकिन प्रश्न यह भी है कि इन देशों ने अपनी सहमति को साकार कितना किया?

ओजोन क्षरण का पहला शिकार अमेरिका हुआ है, क्योंकि ओजोन की चादर में पहला छेद अंटार्कटिक के ठीक ऊपर बना। यह छेद न केवल इस महाद्वीप के लिए खतरनाक है, बल्कि कई अन्य महाद्वीपों के लिए भी। क्योंकि अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने के कारण कई सारे देशों के जलमग्न होने का खतरा पैदा हो गया है। ताजा खबर यह है कि यह बर्फ अब बहुत तेजी के साथ पिघल रही है।

लिहाजा यदि हम वाकई गम्भीर हैं, तो हमें साल के 365 दिन ओजोन को याद रखना होगा। और इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी सोच और जीवन शैली बदलनी होगी।

अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे, ऊर्जा की खपत घटानी होगी, पर्यावरण अनुकूल उत्पादों और वस्तुओं का इस्तेमाल करना होगा, क्योंकि इस रक्षा कवच की रक्षा बहुत जरूरी है। तो क्या हम इसके लिए तैयार हैं?

ओजोन की चादर क्या है ?

अंटार्कटिका के ऊपर इस ओजोन छिद्र का पता 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जोसेफ फारमैन, ब्रायन गार्डनर और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के जोनाथन शंकलिन ने लगाया था। इसके पहले वायुमंडल में ओजोन की चादर की खोज वर्ष 1913 में फ्रेंच वैज्ञानिकों, चार्ल्स फैब्री और हेनरी बूइसॉ ने की थी।

पृथ्वी से 30 मील ऊपर तक का क्षेत्र वायुमंडल कहलाता है और वायुमंडल के सबसे ऊपरी हिस्से में ओजोन गैस की पर्त है। ओजोन नीले रंग की गैस होती है। ओजोन में ऑक्सीजन के तीन परमाणु मिले हुए होते हैं। श्वसन क्रिया के लिए जिस ऑक्सीजन की जरूरत होती है, उसमें ऑक्सीजन के दो परमाणु होते हैं। लिहाजा ओजोन गैस प्रत्यक्ष रूप में हमारे जीवन के लिए खतरनाक है। सीएफसी से निकलने वाली क्लोरीन गैस ओजोन के एक ऑक्सीजन परमाणु से अभिक्रिया कर जाती है। यह प्रक्रिया जारी रहती है, और इस तरह क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के 100,000 अणुओं को नष्ट कर डालता है।

अमेरिका की एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के अनुसार ओजोन क्षरण के कारण, वर्ष 2027 तक पैदा होने वाले छह करोड़ अमेरिकी त्वचा कैंसर से पीड़ित होंगे। इनमें से लगभग 10 लाख लोग बेमौत मारे जाएंगे। कुछ अनुसंधानों में कहा गया है कि कैंसर के अलावा मलेरिया और अन्य संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाएगा। ईपीए के अनुसार ओजोन क्षरण के कारण मोतियाबिंद के 1़ 70 करोड़ नए मामले सामने आ सकते है, वृक्षों का जीवन चक्र बदल सकता है, खाद्य श्रृंखला बिगड़ सकती है। इसका असर पशुओं पर भी पड़ेगा। समुद्र बुरी तरह प्रभावित होगा। अधिकांश समुद्री सूक्ष्म जीव समाप्त हो जाएंगे। इसके अलावा और क्या-क्या समस्याएं पैदा होंगी, कहना कठिन है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय समिति (आईपीसीसी) की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि ओजोन क्षरण के कारण धरती का तापमान पिछले 100 सालों में 0.74 प्रतिशत बढ़ गया है।

ओजोन की चादर को बचाने के लिए सीएफसी के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध के अलावा फिलहाल और कोई रास्ता नही है। इसी बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 16 सितंबर 1995 को संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहल पर मोट्रियल प्रोटोकॉल पर 191 देशों ने सहमति जताई थी। प्रोटोकाल के तहत सभी सदस्य देशों को सीएफसी के उत्पादन और इस्तेमाल में कमी लाने के लिए अपने-अपने स्तर पर उपाय करने थे। इसी सहमति के समर्थन में अब हर वर्ष 16 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या साल में एक दिन का समारोह मना लेने से यह समस्या सुलझ जाएगी? जवाब होगा नही!

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