फेनी नदी से लगे त्रिपुरा राज्य के गांवों को अब इस बात को लेकर उम्मीद बंधी है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के दौरान आठ दशक पुराने जल विवाद का कोई ठोस समाधान निकल आएगा। यह नदी दक्षिणी त्रिपुरा में बांग्लादेश के साथ एक प्राकृतिक सीमा के रूप में काम करती है।


फेनी नदी त्रिपुरा की राजधानी अगरतला के दक्षिण 135 किलोमीटर दूरी पर बहती है। यह नदी 1934 से ही विवाद में है। त्रिपुरा सरकार के अधिकारियों के अनुसार, नदी के कुल 1,147 वर्ग किलोमीटर के जलागम क्षेत्र का 535 वर्ग किलोमीटर हिस्सा भारत में पड़ता है और बाकी हिस्सा बांग्लादेश में।


सीमावर्ती कस्बा, सबरूम की नगरपालिका के अध्यक्ष शांतिप्रिय भौमिक ने आईएएनएस को बताया, “भारत और बांग्लादेश के बीच जल बंटवारे का मुद्दा ढाका और नई दिल्ली के बीच कई बैठकों के बावजूद सुलझ नहीं पाया है।”


भौमिक ने आईएनएनएस से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जल बंटवारे का यह पुराना मुद्दा प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान सुलझ जाएगा।


त्रिपुरा के जल संसाधन विभाग में मुख्य अभियंता तपन लोध ने कहा, “बांग्लादेश की आपत्ति के कारण 2003 से ही फेनी नदी से सम्बंधित 14 परियोजनाएं लटकी हुई हैं और इससे भारतीय गांवों में सिंचाई पर असर पड़ रहा है।”


बांग्लादेश ने हालांकि मई 2010 में नई दिल्ली में संयुक्त नदी आयोग की हुई 37वीं बैठक में फेनी से सम्बंधित पेयजल परियोजनाओं और 21 नदी संरक्षण परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की भारत को अनुमति दे दी थी।


ज्ञात हो कि भारत और बांग्लादेश के बीच 2,979 किलोमीटर लम्बी भू-सीमा और 1,116 किलोमीटर नदी सीमा मौजूद है। बांग्लादेश के साथ भारत की 54 नदियों की साझेदारी है, लेकिन फिलहाल गंगा नदी के जल बंटवारे को लेकर ही दोनों देशों के बीच समझौता हो पाया है। यह समझौता 1996 में हुआ था।


चार भारतीय राज्यों -पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, असम और त्रिपुरा- की 4,095 किलोमीटर लम्बी सीमा बांग्लादेश से लगी हुई है।


इतिहासकार व राजनीतिक विश्लेषक तापस डे ने कहा, “ब्रिटिश राज के दौरान ही फेनी नदी को लेकर 1934 में विवाद खड़ा हो गया। उस समय त्रिपुरा एक स्वतंत्र रियासत था। भारत की आजादी और विभाजन के बाद भी यह विवाद लगातार बना हुआ है।”


[सुजीत चक्रबर्ती]


 

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