वे दिन चले गए जब अध्यापन के पेशे को युवा कम वेतन के कारण उपेक्षा की नजर से देखते थे। बड़ी संख्या में शिक्षण संस्थाओं के खुलने एवं छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से युवाओं में अध्यापन के प्रति जबरदस्त आकर्षण उत्पन्न हुआ है।
रेड्डी ने आईएएनएस को बताया, “छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से शिक्षकों के वेतन में जबरदस्त वृद्धि हुई है, जिसकी वजह से युवा इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। कारपोरेट क्षेत्र के विपरीत इसकी कार्य अवधि भी आरामदायक है।”
रेड्डी ने हालांकि नए अध्यापकों में प्रतिबद्धता एवं व्यावसायिकता की कमी होने के कारण दुख व्यक्त किया।
छठे वेतन आयोग को एकमात्र कारण मानने से इंकार करती हुईं दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षा विभाग की नमिता रंगनाथन ने कहा कि एक कारण पेशे के तौर पर अध्यापन में लोगों के विश्वास का पुन: उत्पन्न होना भी है।
रंगनाथन ने आईएएनएस से कहा, “कॉल सेंटर में स्थायित्व नहीं है। जबकि अध्यापन की नौकरी में स्थायित्व है। इस पेशे के साथ सामाजिक प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है।”
उन्होंने कहा कि पढ़ाने के लिए छात्रों का तांता लगा हुआ है।
उन्होंने कहा, “आबादी बढ़ रही है और शिक्षा मूलभूत आवश्यकता है। शिक्षण में कई नये पथ खुले हैं जो पहले नहीं थे।”
इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करने वाली 25 वर्षीय रितु सिंह भी अध्यापक बनना चाहती हैं। उनका मानना है कि इस पेशे में बौद्धिक रूप से भी विकास होता है, जो अन्य में सम्भव नहीं है।
दूसरी तरफ जामिया मिलिया इस्लामिया के शैक्षणिक विभाग की प्रमुख नज्मा अमीन का मानना है कि शिक्षा के प्रति लोगों का नजरिया अभी भी पहले जैसा है।
उन्होंने कहा कि अध्यापन अभी भी युवाओं के लिए अंतिम विकल्प है।
[गौरव शर्मा]