विश्व की चुनौतियों और समस्याओं का यदि समाधान हो जाए तो एक बेहतरीन समाज का सपना साकार हो सकेगा। यह सपना तभी साकार हो सकेगा जब व्यक्तिगत स्तर पर लोग अपने और अपने परिवेश के प्रति जागरूक होंगे और जागरूकता तब तक नहीं विकसित हो सकती जब तक कि विश्व की एक बड़ी अशिक्षित आबादी साक्षर नहीं हो जाती।

इसी उद्देश्य के साथ संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 17 सितम्बर, 1965 को विश्व भर के लोगों को साक्षर बनाने का बीड़ा उठाया। संगठन ने शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए आठ सितम्बर को ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाने की घोषणा की।

संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में करीब चार अरब लोग साक्षर हैं और 77.6 करोड़ लोग न्यूनतम साक्षरता दर से भी नीचे हैं। इसका मतलब यह है कि हर पांच में से एक व्यक्ति निरक्षर है। दुनिया के लगभग 35 देशों में आज भी साक्षरता दर 50 फीसदी से भी कम है।

भारत में साक्षरता की दर की अगर बात करें तो यह वर्ष 2011 में बढ़कर 74.4 फीसदी तक पहुंच गई है लेकिन यह अभी भी विश्व की औसत साक्षरता दर 84 फीसदी से काफी कम है।

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के माध्यम से यूनेस्को प्रति वर्ष विश्व समुदाय को यह याद दिलाता है कि साक्षर होने का मतलब केवल लोगों को शिक्षित करना मात्र नहीं है। इसके कई फायदे हैं। बेहतर साक्षरता दर से जनसंख्या बढ़ोत्तरी, गरीबी और लिंगभेद जैसी चुनौतियों से निपटा जा सकता है।

देश में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने भी कई कदम उठाए हैं लेकिन इसके बावजूद साक्षरता दर के विकास में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। वर्ष 1990 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक भारत में यदि साक्षरता की दर ऐसे ही रही तो उसे पूर्ण साक्षरता दर हासिल करने में 2060 तक का इंतजार करना पड़ सकता है।

वर्ष 2011 में पुरुषों की साक्षरता दर जहां 82.16 फीसदी रही वहीं महिलाओं की साक्षरता दर 65.46 फीसदी ही दर्ज की गई। देश की पारिवारिक योजनाओं और जनसंख्या स्थिरता पर महिलाओं की साक्षरता दर कम होने का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जनगणना आंकड़ों में इस बात के सकारात्मक संकेत भी मिले हैं कि महिलाओं की साक्षरता दर 11.8 फीसदी थी जो पुरुषों की साक्षरता दर 6.4 फीसदी से अधिक है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए संविधान में पूर्ण और अनिवार्य शिक्षा का प्रस्ताव रखा गया। वर्ष 1949 में संविधान निर्माण के छह दशकों से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद हम अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सके हैं। भारतीय संसद में वर्ष 2002 में 86वां संशोधन अधिनियम पारित हुआ जिसके तहत 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने हालांकि कई देशों के साथ मिलकर साक्षरता को बढ़ाने के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं और इसके लिए कई लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से चार लक्ष्य : सभी के लिए शिक्षा, सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र साक्षरता दशक, संयुक्त राष्ट्र निरंतर विकास के लिए शिक्षा का दशक रखे हैं।

भारत में इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, मिड-डे-मिल योजना जैसे कार्यक्रम चलाए गए हैं लेकिन इन्हें पूरी तरह से लागू करने में सफलता नहीं मिल पाई है।

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के मौके पर चलिए हम देश और विश्व को साक्षर बनाने का संकल्प लें और यह तभी सम्भव हो सकता है जब हम अपने आस-पास मौजूद अशिक्षित लोगों के मन में शिक्षा का अलख जगा पाएंगे।

[विद्याशंकर राय]

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