शारीरिक स्वास्थ्य में योग का बहुत ही महत्व माना जाता है। योगासन करने से शरीर के साथ ही मन भी स्वस्थ रहता है। इसके अलावा योगासन करने से शरीर की सारी मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है, जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है। योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं। आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करने वाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।

तो आइए हम आपको बताते हैं कुछ आसनों के बारे में, जिनसे आप अपने शरीर को सुडौल तथा स्वस्थ बना सकते हैं।

 

सर्वांगासन –

सर्वांगासन का तात्पर्य सभी अंगों के एकसाथ आसन से है। इस आसन को करने से सभी अंगो को व्यायाम मिलता है। यह आपके कंधे और गर्दन के हिस्से को मजबूत बनाता है। यह नपुंसकता, निराशा, यौन शक्ति और यौन अंगों के विभिन्न अन्य दोष की कमी को भी दूर करता है।

विधि – किसी सुविधाजनक स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर शवासन में लेट जाएं। अपने दोनों हाथों को जांघों की बगल में तथा हथेलियों को जमीन पर रखें। पैरों को घुटनों से मोड़कर ऊपर उठाइएं तथा पीठ को कंधों तक उठाएं। दोनों हाथ कमर के नीचे रखकर शरीर के उठे हुए भाग को सहारा दें। इस तरह ठुड्डी को छाती से लगाए रखें। सांस को रोके नहीं स्वाभाविक रूप से चलने दें। यथाशक्ति पैर और धड़ को एक सीध में रखें। इस स्थिति में रुकने के बाद, पैरों को जमीन पर वापस ले आएं। पैरों को घुटनों से मोड़ते हुए घुटनों को माथे के पास ले आएं। हाथों को जमीन रखते हुये शरीर और पैरों को धीरे-धीरे वापस शवासन में आ जाएं। अब शवासन में शरीर को शिथिल अवस्था में आ जाएं। आसन करते समय आंखों को खुला रखें।

सावधानियां – जल्दबाजी एवं हड़बड़ाहट में यह आसन न करें। इस आसन का अभ्यास पीठ दर्द, कमर दर्द, नेत्र रोगी और उच्च रक्तचाप के रोगी ने करें। मासिकधर्म के दौरान तथा गर्भवती होने पर स्त्रियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।

 

हलासन –

इस आसन में शरीर का आकार हल जैसा बनता है। इससे इसे हलासन कहते हैं। हलासन हमारे शरीर को लचीला बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। इससे हमारी रीढ़ सदा जवान बनी रहती है। यौन ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इस आसन का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पुरुषों और महिलाओं की यौन ग्रंथियों को मजबूत और सक्रिय बनाता है। 

विधि – पहले पीठ के बल भूमि पर लेटकर एड़ी और पंजे मिला लें। हाथों की हथेलियों को भूमि पर रखकर कोहनियों को कमर से सटाए रखें। अब श्वास को सुविधानुसार बाहर निकाल दें, फिर दोनों पैरों को एक-दूसरे से सटाते हुए पहले 60 फिर 90 डिग्री के कोण तक एक साथ धीरे-धीरे भूमि से ऊपर उठाते जाएं।

घुटना सीधा रखते हुए पैर पूरे ऊपर 90 डिग्री के कोण में आकाश की ओर उठाएं। फिर हथेलियों को भूमि पर दबाते हुए हथेलियों के सहारे पैरों को पीछे सिर की ओर झुकाते हुए पंजों को भूमि पर रख दें। अब दोनों हाथों के पंजों की संधि कर सिर से लगाएं, फिर सिर को हथेलियों से थोड़ा-सा दबाएं, जिससे आपके पैर और पीछे की ओर जाएं। इसे अपनी सुविधानुसार जितने समय तक रख सकते हैं रखें, फिर धीरे-धीरे इस स्थिति की अवधि को दो से पाँच मिनट तक बढ़ाएं।

सावधानियां – रीढ़ संबंधी गंभीर रोग अथवा गले में कोई गंभीर रोग होने की स्थिति में यह आसन न करें। आसन करते समय ध्यान रहे कि पैर तने हुए तथा घुटने सीधे रहें। जिन्हें ब्लड प्रेशर की शिकायत है उन्हें यह आसन कहीं करना चाहिए।

 

धनुरासन –

इसमें शरीर की आकृति सामान्य तौर पर खिंचे हुए धनुष के समान हो जाती है, इसीलिए इसको धनुरासन कहते हैं। इसे धनुरासन भी कहा जाता है। यह कामेच्छा जाग्रत करने और संभोग क्रिया की अवधि बढ़ाने में सहायक है। योगाचार्यों के अनुसार यह पुरुषों के वीर्य के पतलेपन को दूर करता है। लिंग और योनि को शक्ति प्रदान करता है।

विधि – धनुरासन को करने के लिए सबसे पहले जमीन पर चटाई बिछाकर मुंह के बल या पेट के बल लेट जाएं। इसके बाद अपने दोनों हाथों को बगल से सटाकर पूरे शरीर के स्नायुओं को बिल्कुल ढीला छोड़ दें। इसके बाद अपनी दोनों एड़ी व पंजों को आपस में मिलाते हुए व घुटनों के बीच फासला रखते हुए पैरों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाते हुए सिर की तरफ मोड़ें तथा दोनों पैरों को एड़ी के पास से दोनों हाथों से पकड़ लें। हाथों पर जोर देकर पैरों को खींचते हुए अपने सिर, छाती तथा जांघों को जितना सम्भव हो उतना ऊपर की ओर ऊठाने का प्रयास करें। इसके बाद अपने दोनों हाथों को बिल्कुल सीधा रखें। इस स्थिति में तब तक रहें, जब तक आप रह सकें और सांसों को कुछ देर रोककर रखें। फिर धीरे-धीरे सांसों को छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में आ जाएं।

सावधानियां – इस आसन को अच्छी तरह से सीख कर ही करना चाहिए। इस आसन को खाली पेट करें। इस आसन को उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर), अल्सर तथा हर्निया वाले रोगियों को नहीं करना चाहिए। इसका अभ्यास योग आसन के जानकार की देख-रेख में करें। जिसे कमर दर्द और रीढ़ की हड्डी में दर्द हो उसे इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

 

पश्चिमोत्तनासन –

पश्चिम अर्थात पीछे का भाग-पीठ। पीठ में खिंचाव उत्पन्न होता है, इसीलिए इसे पश्चिमोत्तनासन कहते हैं। इस आसन से शरीर की सभी मांसपेशियों पर खिंचाव पड़ता है। सेक्स से जुड़ी समस्त समस्या को दूर करने में सहायक है। जैसे कि स्वप्नदोष, नपुंसकता और महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़े दोषों को दूर करता है।

विधि – दोनों पैर सामने फैलाकर बैठ जाएँ। एड़ी-पंजे आपस में मिलाकर रखें। दोनों हाथ बगल में सटाकर, कमर सीधी और निगाहें सामने रखें। अब दोनों हाथों को बगल से ऊपर उठाते हुए कान से सटाकर ऊपर खींचें। इस स्थिति में दोनों हाथों के बीच में अपना सिर रखें। अब सामने देखते हुए कमर से धीरे-धीरे रेचक करते हुए झुकते जाएं। अपने दोनों हाथों से पैर के अँगूठे पकड़कर रखें और ललाट को घुटने से लगाएं। यथाशक्ति कुम्भक में रुकने के बाद सिर को उठाते हुए, पूरक करते हुए पूर्व स्थिति में आएं।

सावधानियां – इस आसन में न तो झटके से कमर को झुकाएं और न उठाएं। ललाट को जबरदस्ती घुटने से टिकाने का प्रयास न करें। प्रारंभ में यह आसन आधा से एक मिनट तक करें, अभ्यास बढ़ने पर 15 मिनट तक करें। कमर या रीढ़ में गंभीर समस्या होने पर योग चिकित्सक की सलाह पर ही यह आसन करें।

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