नई दिल्ली ।। अभिनेत्री दीप्ति नवल काफी पहले से ही बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हैं। वह कहती हैं कि उनकी 1985 में आई फिल्म ‘पंचवटी’ ने उन्हें बौद्ध धर्म से परिचित कराया था। दीप्ति कहती हैं कि यह धर्म ‘जियो और जीने दो’ में भरोसा करता है। 

‘पंचवटी’ लेखिका कुसुम अंसल की लघु कहानी पर आधारित है।

दीप्ति ने कहा, “मैं न्यूयार्क से स्नातक करके लौटी थी। ‘पंचवटी’ मुझे जापान ले गई। वहां एक महोत्सव में इसका प्रदर्शन हुआ। महोत्सव के बाद मैं हिरोशिमा गई और फिर वहां से मियाजिमा द्वीप के लिए उड़ान भरी। मैं द्वीप पर अपने कैमरे के साथ घूम रही थी, वहां मैंने मंत्रोच्चार सुना। यह सम्मोहित कर देने वाला था।”

उन्होंने कहा, “मैं इसके प्रति पूरी तरह सम्मोहित थी। किसी ने बताया कि यह बौद्ध मंत्रोच्चार है। यह मंदिरों में होने वाली धक्का-मुक्की से पूरी तरह अलग था।” दीप्ति यहां रविवार से शुरू हुए चार दिवसीय वैश्विक बौद्ध सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पहुंची थीं।

लघु कहानी ‘एक और पंचवटी’ पर आधारित ‘पंचवटी’ फिल्म एक साध्वी व नेपाल के एक चित्रकार की कहानी है। वह बौद्ध मंदिर में होने वाले शांतिपूर्ण मंत्रोच्चार से प्रभावित हैं

उन्होंने कहा, “80 के दशक की शुरुआत में भारत में बौद्ध धर्म के चिह्न नहीं मिलते। शांतिपूर्ण ढंग से मंत्रोच्चार करना अद्भुत है। मैं लौटी तो मैंने बुद्ध की शिक्षाओं पर पढ़ना शुरू किया, मैं इनसे प्रभावित हुई। मैं हमेशा शांत रहने और उत्तेजित न होने की कोशिश करती हूं।”

वैश्विक बौद्ध सम्मेलन के विषय में बोलते हुए उन्होंने बताया कि वह एक प्रेक्षक के रूप में बौद्ध धर्म को समझने के लिए यहां पहुंची हैं। उन्होंने कहा कि यहां जो कुछ हो रहा है उसे वह आत्मसात करना चाहती हैं।

दीप्ति को ‘चश्मे बद्दूर’, ‘एक बार फिर’, ‘मिर्च मसाला’ व कई अन्य फिल्मों में संवेदनशील व शक्तिशाली अभिनय के लिए जाना जाता है। वह एक चित्रकार, फोटोग्राफर, कवियित्री, लेखिका व मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं।

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