नई दिल्ली ।। फिल्मकार व अभिनेता फरहान अख्तर फिल्मों की सफलता का पैमाना प्रदर्शन के शुरुआती सप्ताहांत के बॉक्सऑफिस पर व्यवसाय से करने के खिलाफ हैं। वह मानते हैं कि फिल्म को दर्शकों के बीच जगह बनाने में समय लगता है। 

अड़तीस वर्षीय फरहान ने कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि फिल्मों का गोल्डन जुब्ली या सिल्वर जुब्ली मनाने का दौर समाप्त हो गया। दर्शकों को परोसी जा रही सामग्री पर विचार होना चाहिए। हमारे पास पर्याप्त सिनेमाघर या ऐसे मल्टीप्लेक्स नहीं हैं जहां लम्बे समय तक फिल्में लगी रहें।”

बीते दशक के दौरान फिल्मों का अर्थशास्त्र पूरी तरह बदल गया है, खासकर बॉक्सऑफिस पर व्यवसाय तो प्रदर्शन के पहले सप्ताहांत तक ही सिमट कर रह गया है।

उन्होंने कहा, “पहले सप्ताहांत को ही निर्णायक सप्ताहांत मान लिया जाता है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है जबकि लोगों के बीच चर्चा होने के बाद ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ जैसी कुछ फिल्मों ने दूसरे सप्ताह भी अच्छा व्यवसाय किया। यह व्यवसाय की मानसिकता है। हमें समझना होगा कि एक फिल्म को अपनी जगह बनाने में समय लगता है।”

फरहान की 2006 में आई फिल्म ‘डॉन-द चेज बिगिंस’ का अगला भाग ‘डॉन-2’ 23 दिसम्बर को प्रदर्शन के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि वह 12 दिसम्बर से अपनी इस फिल्म के प्रचार-प्रसार की कवायद शुरू करेंगे।

उन्होंने कहा, “विपणन या फिल्म का प्रचार-प्रसार केवल पैसा खर्च करना नहीं है। चाहे कम बजट की फिल्में हों या बड़े बजट की फिल्में, यह जरूरी है कि लोग उसकी खासियत जानते हों। आपको इस सम्बंध में सोचना चाहिए और यह योजना होनी चाहिए कि आप लोगों को फिल्म के सम्बंध में कैसे बताएं।”

उन्होंने कहा, “ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि लगातार बहुत कुछ हो रहा है। बहुत सी जानकारी तो टेलीविजन, मोबाइल और आईपैड्स के जरिए पहले ही मिल जाती है। जरूरी है कि अव्यवस्था से निकलकर आप दर्शकों तक पहुंच सकें।”

गीतकार जावेद अख्तर व अभिनेत्री-लेखिका मां हनी ईरानी के बेटे फरहान ने 2001 में फिल्म ‘दिल चाहता है’ के निर्देशन से बॉलिवुड में शुरुआत की थी। बाद में उन्होंने ‘लक्ष्य’ व ‘डॉन’ का निर्देशन किया। फिल्म ‘रॉक ऑन’ से उन्होंने अभिनय की शुरुआत की।

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