नई दिल्ली, Hindi7.com ।। अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह का कौमी एकता का सदाबहार सरचश्मा कहा जाता है। यह अजमेर नगर में जड़े हीरे की भांति है, जहां पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन रमजान के पूरे महीने यहां की रौनक देखते ही बनती है।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समकालीन कवि जयनक ने ‘पृथ्वीराज विजय’ नामक अपने संस्कृत ग्रंथ में अजमेर नगर के सौन्दर्य और वैभव का सुन्दर वर्णन किया है। यह ग्रंथ 1190 के आस-पास लिखा गया था।

जयनक ने लिखा है ‘अजमेर में इतने मंदिर हैं कि इसे देवी-देवताओं के स्थान कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा। अजमेर निवासियों की भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा है। यहां की पहाड़ी पर बने किले के कुएं और तालाबों में भी पर्याप्त जल उपलब्ध है। यहां के लोगों को पुष्कर का पवित्र जल भी प्राप्त है।

यहां पर संगमरमर दूध के समान सफेद है, जो चन्द्रमा के सौन्दर्य को भी पीछे छोड़ देते हैं। नाग पहाड़ी की तलहटी में ‘आना’ सागर झील के किनारे हरे-भरे सुरम्य वातावरण के बीच बसे ऐसी खूबसूरत नगरी को ख्वाजा ने अपना मुकाम बनाया। उन्होंने बताया कि तुम किसी के मजहब को बुरा मत कहो, हर मजहब का आदर करो। यदि तुम अपने मजहब का आदर करना चाहते हो, तो दूसरे मजहब का आदर करना भी सीखो। इसलिए अजमेर की दरगाह में जो भी खास मेहमान आते हैं, उन्हें उन्हीं के धर्म की पुस्तक-गीता, रामायण, कुरान शरीफ या बाइबल आदि भेंट की जाती है। यहां प्रायः मंदिरों की तरह सेवा, पूजा, चांदी, सोना, रूपए और चादर वगैरह चढ़ाने जैसे कार्य होते हैं।

मुस्लिम जगत में मक्का-मदीना के बाद अजमेर की दरगह का मुख्य स्थान है। ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के बारे में ख्वाजा बख्तियार काकी का लिखा एक वाक्य गौर करने लायक है, ‘मैं बीस वर्ष तक, उनकी खिदमत में रहा, लेकिन उन्हें कभी-भी अपनी सेहत के लिए दुआ मांगते नहीं देखा। जब कभी दुआ मांगते तो दर्द की दुआ मांगते। एक बार मैंने पूछा, ‘हुजूर आप यह क्या मांगा करते हैं? तो ख्वाजा ने समझाया, दर्द से ही ईमान पैदा होता है। जो लोग दर्द सहते हैं, उनके अन्दर दूसरों के प्रति हमदर्दी की भवना पैदा होती है।

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