रामपुर (हिमाचल प्रदेश) ।। कभी तिब्बत के साथ व्यापार का केंद्र रहे 400 साल पुराने लावी मेले का रूप-रंग अब बदल गया है। बीते समय के दौरान ग्रामीणों की जीवनशैली में बड़ा बदलाव आया है और इसके साथ ही इस मेले में खेती के उपकरणों, मवेशियों और सूखे मेवों की बजाए इलेक्ट्रॉनिक सामान और वाहनों की बिक्री बढ़ी है।

जब रामपुर बुशहर राज्य के राजा केहरि सिंह ने तिब्बत के साथ व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए एक समझौता किया था, तभी से यह मेला लगाया जाता है। रामपुर, शिमला से 120 किलोमीटर की दूरी पर है, जो कभी व्यापार का एक मुख्य केंद्र रहा था। यह अफगानिस्तान, तिब्बत और जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख को जोड़ने वाले रेशम मार्ग पर स्थित था।

एक व्यापारी शिव सिंह नेगी ने बताया, “अब यह कृषि उपकरणों, घोड़ों और भेड़ों की खरीददारी वाला मेला नहीं रह गया है। अब आप यहां लोगों को कालीन, टेलीविजन सेट, फर्नीचर और वाहन खरीदते देखेंगे।”

राज्यपाल उर्मिला सिंह ने इस मेले का उद्घाटन किया था और सोमवार को इसका समापन होगा।

नेगी यहां सूखे मेवों की बिक्री करते हैं। उन्होंने बताया कि बीते बरसों के दौरान सूखे मेवे के खरीददारों की संख्या में तेजी से कमी आई है। उन्होंने कहा, “अगले साल से हमारे इस मेले में हिस्सा न लेने की उम्मीद है।”

एक अन्य व्यापारी नरेश ठाकुर कहते हैं कि साल 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले रामपुर व्यापार-विनिमय का केंद्र रहा है।

तिब्बत से आने वाले व्यापारी यहां कच्ची ऊन, जड़ी-बूटियां और चमड़े के उत्पाद लेकर आते थे। वे यहां से अपने साथ गेहूं का आटा, चावल, मक्खन, कृषि औजार व पशु ले जाते थे। 

ठाकुर ने बताया, “सीमापार के व्यापारियों ने यहां आना बंद कर दिया है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां यहां हर साल इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, आधुनिक उपकरण और ऐशो-आराम के सामान बेचती हैं।”

लावी मेले से पहले यहां तीन दिन के लिए घोड़ों की प्रदर्शनी आयोजित होती है और उनका व्यापार भी होता है।

शिमला के उपायुक्त ओंकार शर्मा का कहना है, “मेले में पहले की तरह इस बार भी चार पहिया वाहनों व इलेक्ट्रॉनिक सामानों की ज्यादा मांग रही।”

मेले में पंजाब और हिमाचल प्रदेश के कई लोक गायकों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं।

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