नई दिल्ली ।। तेल कम्पनियों को पेट्रोल मूल्य वृद्धि की अनुमति देने के बाद रक्षात्मक मुद्रा में आई सरकार ने शुक्रवार को कहा कि कच्चे तेल के मूल्यों में वृद्धि एवं रुपये में गिरावट के कारण सरकारी कम्पनियों के सामने मूल्य वृद्धि के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

तेल विक्रेता कम्पनियों ने गुरुवार शाम को पेट्रोल की कीमत में 1.80 रुपये प्रति लीटर वृद्धि घोषणा की थी। बढ़ी हुई कीमत शुक्रवार से लागू हो गईं।

पेट्रोलियम मंत्रालय ने बयान में कहा, “2010-11 के दौरान कच्चे तेल का औसत मूल्य 85.09 डॉलर प्रति बैरल था, जिसमें 30 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। इस वित्तीय वर्ष में औसत मूल्य 110 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है।”

मंत्रालय ने कहा, “स्थितियां खराब और हो गईं जब हाल के महीनों में डॉलर के मुकाबले रुपया 45 से गिरकर 49 हो गया।”

मूल्य वृद्धि के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार (सम्प्रग) को अपने घटक दलों सहित विपक्षी दलों की आलोचना का शिकार होना पड़ा है।

सम्प्रग के प्रमुख घटक तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने ‘एक पक्षीय निर्णय’ लेकर पेट्रोल मूल्य वृद्धि करने के विरोध स्वरूप सरकार से हटने का समर्थन किया है। लेकिन पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कान से लौट कर आने तक कोई भी निर्णय न लेने का फैसला किया है।

मंत्रालय ने कहा कि 25 जून को कीमतों में वृद्धि के बावजूद तेल कम्पनियों को डीजल पर 8.58 रुपये प्रति लीटर, किरोसीन पर 25.66 रुपये प्रति लीटर एवं रसोई गैस के प्रति सिलेंडर पर 260.50 रुपये का नुकसान हो रहा है।

मंत्रालय ने कहा, “सरकारी तेल कम्पनियों को पिछले वर्ष के 78,190 करोड़ रुपये की तुलना में इस वर्ष 1,32,000 करोड़ रुपये का घाटा होने की उम्मीद है।”

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