नई दिल्ली ।। ‘टाइगर’ के नाम से मशहूर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी का गुरुवार को निधन हो गया।

फेफड़े में गम्भीर संक्रमण के कारण पटौदी का लगभग एक महीने से सर गंगाराम अस्पताल में इलाज चल रहा था। वह 70 वर्ष के थे। कुल 40 टेस्ट मैचों में भारतीय क्रिकेट टीम का नेतृत्व करने वाले पटौदी के निधन से खेल के साथ-साथ फिल्म और राजनीतिक जगत में भी शोक की लहर दौड़ गई।

अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के पति और फिल्म अभिनेता सैफ अली खान के पिता पटौदी की देखरेख कर रहे गंगाराम अस्पताल के पल्मोनोल्जी (चेस्ट मेडीसिन) विभाग के अध्यक्ष और सीनियर कंसल्टेंट नीरज जैन ने गुरुवार दोपहर जारी मेडिकल बुलेटिन में कहा था कि बुधवार से पटौदी की हालत में सुधार नहीं हो रहा था। इसके चंद घंटों बाद ही अस्पताल द्वारा उनके निधन की पुष्टि की गई।

70 वर्षीय पटौदी को फेफड़े में गम्भीर संक्रमण के बाद अगस्त में अस्पताल में दाखिल किया गया था। उनके दोनों फेफड़े ऑक्सीजन को साधारण अवस्था में गुजरने नहीं दे रहे थे।

पटौदी के रूप में भारतीय क्रिकेट ने एक दूरदर्शी कप्तान खो दिया। यही कारण है कि 1961 में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करने के साथ कप्तानी की जिम्मेदारी स्वीकार करने वाले पटौदी ने कुल 46 मैच खेले और 40 में टीम का नेतृत्व किया।

पटौदी 21 वर्ष की उम्र में बारबाडोस में वेस्टइंडीज के खिलाफ 1962 में कप्तान बनाए गए थे क्योंकि नियमित कप्तान नारी कांट्रेक्टर तेज गेंदबाज चार्ली ग्रिफिथ की एक गेंद पर चोटिल होने के कारण अस्पताल में इलाज करा रहे थे। इस तरह पटौदी को भारतीय क्रिकेट का सबसे युवा कप्तान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनका यह रिकार्ड 2004 तक कायम रहा।

पटौदी की देखरेख में भारतीय टीम ने कुल नौ टेस्ट मैच जीते थे। वह उनका ही कार्यकाल था, जब भारतीय टीम को यह यकीन हो चला था कि वह भी जीत हासिल कर सकती है। यह काफी कुछ सौरव गांगुली के कप्तानी के कार्यकाल जैसा था, जब भारतीय टीम ने देश और विदेश में सभी टीमों को हराया।

पटौदी ने भारतीय क्रिकेट को उसकी सबसे बड़ी ताकत स्पिन कला पर आश्रित होने का आत्मविश्वास दिया। पटौदी मानते थे कि भारतीय स्पिनर किसी भी टीम को धराशायी कर सकते हैं और यही कारण है कि उन्होंने एक मैच में एक से अधिक स्पिनर को खिलाने की नीति को बढ़ावा दिया। अपनी इसी ताकत के दम पर भारत ने 1968 में डुनेडिन में न्यूजीलैंड को हराकर विदेशी धरती पर पहली टेस्ट जीत दर्ज की।

बतौर बल्लेबाज पटौदी ने बहुत बड़ी उपलब्धि तो हासिल नहीं की लेकिन एक कप्तान के तौर पर उन्होंने जिस स्तर का प्रेरणादायी काम किया, उसे देखते हुए उनके आंकड़े और भी प्रभावशाली दिखते हैं। पटौदी ने 46 टेस्ट मैचों में 34.91 के औसत से 2793 रन बनाए, जिनमें छह शतक शामिल हैं। 203 रन, जो 1964 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ बनाए थे, उनका श्रेष्ठ स्कोर बना रहा।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन ने कहा कि पटौदी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

बीसीसीआई अध्यक्ष ने अपने शोक संदेश में कहा, “मैं पटौदी के निधन की खबर सुनकर हतप्रभ हूं। वह एक आसाधरण इंसान थे। एक कप्तान, बल्लेबाज और क्षेत्ररक्षक के तौर पर उन्होंने भारतीय क्रिकेट को एक नई ऊंचाई दी थी। पटौदी को भारतीय क्रिकेट में क्षेत्ररक्षण में क्रांतिकारी बदलाव लाने का जनक माना जाता है।”

“ऐसे वक्त में जब ड्रॉ को जीत से बेहतर माना जाता था, पटौदी ने अपने खिलाड़ियों को जीत के लिए प्रेरित किया। वह एक आक्रामक बल्लेबाज थे, जो विषम परिस्थितियों में विकेट पर टिके रहने की कला जानते थे। उन्होंने दिखाया कि विपरीत परिस्थिति में किस तरह बर्ताव किया जाता है।”

“मैं बीसीसीआई के अपने सभी सहयोगियों की ओर से उनके निधन पर शोक व्यक्त करता हूं। भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान अतुलनीय रहा है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।”

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी पटौदी के निधन पर शोक व्यक्त किया। सोनिया ने अपने शोक संदेश में कहा, “पटौदी के आकस्मिक निधन पर मैं गहरा शोक प्रकट करती हूं। पटौदी का इस दुनिया से चले जाना खेल जगत और सामाजिक जीवन की ऐसी क्षति है जो एक लम्बे समय तक पूरी नहीं हो सकेगी।”

उन्होंने कहा, “अर्जुन पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित पटौदी के व्यक्तित्व की अपनी एक खास जगह थी।”

उनके निधन पर कई पूर्व खिलाड़ियों ने भी शोक व्यक्त किया।

पूर्व भारतीय क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ ने कहा कि पटौदी सकारात्मक सोच वाले इंसान थे। क्रिकेट के बारे में उनका नजरिया बिल्कुल अलग था।

बकौल अमरनाथ, “यह बहुत दुख की बात है। वह एक बेहतरीन खिलाड़ी थे। वह सकारात्मक सोच वाले इंसान थे। क्रिकेट के बारे में उनका नजरिया बिल्कुल अलग रहता था। वह बहुत कम बोलते थे लेकिन प्रदर्शन पर बहुत ध्यान देते थे। वह बहुत विश्वास से भरे रहते थे।”

पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी संदीप पाटिल ने कहा कि भारतीय क्रिकेट चेहरा बदलने में पटौदी का अहम योगदान रहा है। पाटिल ने कहा, “पटौदी की मृत्यु की खबर सुनकर मैं बहुत दर्द महसूस कर रहा हूं। भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदलने में उनका अहम योगदान रहा।”

“मैं खुशकिस्मत हूं कि वर्ष 1975 में उनके करियर के अंतिम मैच में उनके साथ खेलने का मौका मिला। उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में एक विश्वास जगाया। उनका अलग ही स्वाभाव था। उनमें जबरदस्त विश्वास भरा रहता था।”

“जब मैं उनसे पहली बार मिला था, तब मैंने उन्हें सर कहा था लेकिन उन्होंने कहा कि मेरा नाम टाइगर है, लिहाजा उन्हें टाइगर बुलाया करूं। सच में उनमें एक टाइगर की सारी खूबियां थीं।”

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