नई दिल्ली ।। इस साल के आखिर में डरबन में होने वाली संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन वार्ता में भारत ने अब तक नजरंदाज किए जाने वाले कुछ मुद्दों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा है, जिस पर विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने 2010 में मैक्सिको वार्ता से अलग रुख अख्तियार किया है और अब बेहतर दिशा में है।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस सप्ताह युनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के सचिवालय को भेजे एक पत्र में विकासशील देशों की चिंता को शामिल करने का प्रस्ताव रखा है, जिसे अब तक नजरंदाज किया गया और कानकुन, मेक्सिको वार्ता में इस पर ठीक तरह से बात नहीं की गई।

भारत 30 अक्टूबर से 10 दिसम्बर तक चलने वाली कनफेरेंस ऑफ पार्टीज की 17वीं बैठक की वार्ता सूची में तीन मुद्दों को शामिल करना चाहता है-एकपक्षीय व्यापार मानक, बौद्धिक सम्पदा अधिकार और सतत विकास का न्यायपूर्ण अधिकार।

देश के पूर्व पर्यावरण सचिव प्रदीप्तो घोष ने आईएएनएस से कहा, “तीनों मुद्दे बाली, कोपेनहेगेन और कानकुन वार्ता जलवायु घोषणा पत्र में शामिल हैं, लेकिन इसे पहले की बैठकों में वार्ता की विषय सूची में शामिल नहीं किया गया।”

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डरबन सम्मेलन से पहले कड़ा रुख अपनाए हुई हैं।

उन्होंने कहा, “देशों को पर्यावरण चिंता का उपयोग अपने आर्थिक हितों को पूरा करने में नहीं करना चाहिए। हरित अर्थव्यवस्था के नाम पर हरित संरक्षणवाद को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।”

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉरमेंट (सीएसई) ने कहा कि भारत ने अब बेहतर रुख लिया है।

सीएसई के वरिष्ठ समन्वयक (जलवायु परिवर्तन) आदित्य घोष ने आईएएनएस से कहा, “ग्लोबल वार्मिग समृद्ध देशों के द्वारा पैदा की गई समस्या है और ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम करने की जिम्मेदारी भी उनकी ही है।”

उन्होंने कहा, “भारत ने अब पिछले साल से बिल्कुल अलग रुख अपनाया है और विश्वास की कीजिए यह सही रुख है। “

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