लखनऊ ।। मुसलमानों द्वारा चलाया जा रहा एक साप्ताहिक समाचार पत्र अपने लेखों के जरिए हिंदू धर्म में पूजनीय गाय की हत्या न करने और उसका मांस न खाने के लिए लोगों को खासकर अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े सदस्यों को जागरूक कर रहा है।

लखनऊ से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक हिंदी समाचार पत्र ‘दास्तान-ए-अवध’ गोहत्या के खिलाफ लेख प्रकाशित कर मुस्लिम समुदाय के लोगों से गोकशी के खिलाफ एकजुट होकर विरोध करने का आह्वान कर रहा है।

वर्ष 1998 से प्रकाशित इस समाचार पत्र में शुरुआत से ही गोकशी के खिलाफ नियमित लेख प्रकाशित किए जाते रहे हैं। समाचार पत्र का सूक्ति वाक्य ‘धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक मूल्यों एवं साम्प्रदायिक एकता का दूत’ है।

समाचार पत्र के सम्पादक अब्दुल वहीद (49) ने आईएएनएस को बताया, “समाचार पत्र में हम राजनीति, खेल, व्यापार व अन्य मुद्दों पर खबरें देने के अलावा यह सुनिश्चित करते हैं कि गाय के महत्व पर कम से कम एक लेख प्रकाशित करें।”

उन्होंने कहा, “एक पत्रकार के तौर पर मैं हमेशा से हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करने के लिए अपने लेखन कौशल का उपयोग करना चाहता था।”

वहीद ने कहा, “ऐसे लेखों में हम मुस्लिम समुदाय के लोगों से अपील करते हैं कि वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गोहत्या से दूर रहें क्योंकि हिंदू धर्म में गाय पूजनीय है।”

उन्होंने कहा, “अपने लेखों में हम गोकशी की भर्त्सना ही नहीं करते बल्कि इसे इस्लाम विरोधी भी बताते हैं क्योंकि इस्लाम में हर धर्म का सम्मान करने और किसी की धार्मिक भावनाओं का अनादर न करने की बात कही गई है और मुसलमानों से विभिन्न धर्मो की पवित्र संस्थाओं की रक्षा करने को भी कहा गया है।”

समाचार पत्र के हाल ही में प्रकाशित अंक में भी गोकशी पर एक लेख प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक ‘मुगल बादशाहों की हुकूमत में गोकशी पर पाबंदी’ है। गोकशी पर प्रकाशति होने वाले ज्यादातर दूसरे लेखों की तरह इसे भी वहीद ने ही लिखा है।

वहीद ने कहा कि टीपू सुल्तान और हैदर अली की तरह कई मुगल बादशाहों की हुकूमत में गोकशी करना और गाय का मांस खाना अपराध था। इस कदम के पीछे बादशाहों का मकसद कौमी एकता बनाए रखना था।

उन्होंने कहा, “देश के दूसरे कई राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में 1955 से गोकशी पर प्रतिबंध है, लेकिन इसके बावजूद जब मुझ्झे सूबे से ऐसी खबरें मिलती है कि पुलिस ने गाय के मांस के साथ लोगों को पकड़ा, तो मुझ्झे बहुत शर्म महसूस होती है। मुझेझ् याद है कि कई मौकों पर गाय का मांस बरामद होने के बाद साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ा है।”

दिलचस्प है कि वहीद ने पहले ‘दास्तान-ए-अवध’ को उर्दू साप्ताहिक के तौर पर शुरू किया था लेकिन बाद में ज्यादा पाठकों तक इसकी पहुंच बनाने के लिए इसका हिंदी में प्रकाशन शुरू कर दिया गया।

वहीद ने कहा, “जब अखबार उर्दू में था तो हम अपनी बात सीमित लोगों तक ही पहुंचा पाते थे, लेकिन 2001 से हिंदी में प्रकाशन होने के बाद हमारी पहुंच उन मुसलमान युवाओं तक भी हो गई जो उर्दू भलीभांति नहीं जानते।” ‘दास्तान-ए-अवध’ के लखनऊ के साथ-साथ आस-पड़ोस के बहराइच, आजमगढ़, फैजाबाद, गोरखपुर सहित विभिन्न जिलों में दस हजार से अधिक पाठक हैं।

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