बांदा ।। यह बात सुनने में थोड़ी अटपटी लग सकती है लेकिन यह सच है कि बुंदेलखंड में अब भी पूर्वजों के श्राद्ध में ‘कौवे’ को आमंत्रित करने की परम्परा है। यहां पितृ पक्ष में इस पक्षी को ‘दाई-बाबा’ के नाम से पुकारा जाता है। लोगों का मानना है कि पूर्वज ‘कौवे’ का भी जन्म ले सकते हैं।

बुंदेलखंड में लोग पूर्वज के श्राद्ध की पूर्व संध्या पर ऊंची आवाज में ‘कौवे’ को ‘दाई-बाबा’ कह कर आमंत्रित करते हैं। श्राद्ध केदिन पूर्वजों के नाम हवन-पूजा के बाद बनाए गए पकवान घरों के छप्पर पर फेंके जाते हैं, जिन्हें कौवे झुंड में आकर खाते हैं।

इस इलाके में आमतौर पर दो प्रजाति ‘देसी’ व ‘गंगापारी’ कौवे पाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभार यहां सफेद रंग के कौवे भी दिखाई पड़ते हैं। यदि पितृ पक्ष में सफेद रंग का कौआ किसी के खपरैल में नजर आए तो उसे स्वर्ग से आया पूर्वज माना जाता है।

एक पखवारे तक चलने वाले पितृ पक्ष में कौआ चार बार आमंत्रित किए जाते हैं। बांदा के चंदौर गांव के 80 साल के बुजुर्ग रज्जा का कहना है, “पितृ पक्ष के प्रथम दिन यानी परीवा को पहला न्योता, फिर पूर्वज की मृत्यु की तिथि पर, तीसरा आमंत्रण नवमी तिथि यानी ‘नवें डोकरिया’ और अंतिम बार पितृ विसर्जन के दिन इन पक्षियों को आमंत्रित कर भोजन कराने की सदियों पुरानी परम्परा है।”

तेन्दुरा गांव के बुजुर्ग पंडित मना महराज का कहना है कि इस संसार में 84 लाख योनियां हैं। मृत्यु के बाद जीव किसी भी योनि में जन्म ले सकता है।

कौवे को पितृ पक्ष में आमंत्रित करने के पीछे एक और मान्यता है। यह पक्षी कागभुसुण्ड समाज से है। कागभुसुण्ड भगवान शिव का परम भक्त था, धर्म ग्रंथों में इसका उल्लेख है। इसलिए कौवे को आमंत्रित कर परिवार के लोग भगवान शिव से अपने कल्याण और अनिष्ठ से बचने की कामना करते हैं।

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