ग्वालियर ।। बदलते सामाजिक परिवेश में महिलाएं बड़े पैमाने पर तनाव की शिकार हो रही हैं। इनमें भी कामकाजी महिलाओं की तादाद कहीं ज्यादा है। एक अध्ययन के मुताबिक, घरेलू महिलाओं की तुलना में कामकाजी महिलाएं तनाव का दोगुना शिकार होती हैं। यह अध्ययन एक मनोचिकित्सक ने किया है।

जयारोग्य चिकित्सालय के मनोरोग चिकित्सक डॉ. कमलेश उदैनिया ने महिलाओं में तनाव की स्थिति जानने के लिए 200 महिलाओं को चुना। इनमें 100 घरेलू थीं, जबकि 100 कामकाजी। अध्ययन में पाया गया कि इन कामकाजी महिलाओं में से 50 तनाव की शिकार हैं। इनमें से 25 गम्भीर रूप से तनावग्रस्त हैं, जबकि 12-15 महिलाओं में तनाव का स्तर मध्यम है और 25 में तनाव की शुरुआत हुई है।

वहीं, घरेलू महिलाओं में तनाव तुलनात्मक रूप से कम है। 100 में सिर्फ 25 महिलाएं ही तनाव की शिकार पाई गईं। इनमें से तीन-चार महिलाओं में ही तनाव का स्तर गम्भीर पाया गया। पांच-सात महिलाओं में तनाव मध्यम स्तर तक और 10-15 फीसदी महिलाओं में तनाव का स्तर कम पाया गया।

डॉ. उदैनिया के मुताबिक, तनाव की मूल वजह असुरक्षा की भावना है। घरेलू महिलाओं को जहां केवल घर के वातावरण से तनाव होता है, वहीं कामकाजी महिलाओं में तनाव घरेलू एवं बाहरी दोनों कारणों से होता है। यही वजह है कि वह अधिक तनाव में रहती हैं।

उन्होंने कहा, “कामकाजी पुरुष अक्सर विरोध दर्ज कराकर अपनी भावना व्यक्त कर देते हैं, लेकिन महिलाएं आम तौर पर ऐसा नहीं कर पातीं। ऐसे में उनके बीच अंतर्द्वद्व चलता रहता है और वह तनाव की शिकार हो जाती हैं।”

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