नई दिल्ली ।। 1947 में जब हमें आजादी मिली तो देश ने जिस व्यक्ति को सबसे अधिक पूजा और सर आंखों पर बिठाया वह थे मोहनदास करमचंद गांधी। जनता ने कहा, “दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।” आजादी के 64 साल बीत जाने के बाद आजाद भारत के नए गांधी के रूप में कर्मवीर अन्ना हजारे ने लोकपाल के लिए सत्याग्रह का रास्ता अपनाकर एक पहचान बनाई। देश उन्हें दूसरा गांधी कहकर पुकार रहा है और कह रहा है, “..रालेगांव के संत तूने कर दिया कमाल।”

यह सच है कि महात्मा गांधी और अन्ना हजारे की तुलना नहीं हो सकती। खुद अन्ना हजारे भी इसे स्वीकार करते हैं, क्योंकि वह खुद गांधी के उपासक हैं। उनसे प्रेरणा लेते हैं। उनकी कही बातों का न सिर्फ अनुसरण करते हैं बल्कि उसे जीवन में भी उतारते हैं। यही वजह है कि बोलने के अंदाज से लेकर आचार-विचार, चाल ढाल और कभी-कभी तो शक्ल-सूरत में लोग उनमें गांधी का अक्स देखते हैं। इस संत में लोगों को गांधी की सूरत व सीरत दोनों दिखी। विश्वास दिखा। गांधी सा संत दिखा। निश्चल देश प्रेम दिखा। भ्रष्टाचार के खिलाफ जब उनका कारवां निकला तो सम्भवत: यही सबसे बड़ी वजह थी कि लोग स्वत: ही उससे जुड़ते चले गए।

दरअसल, गांधी के बाद देश में उनके विचारों को किताबों से सतह पर उतारने वाला कोई शख्स अब तक सामने नहीं आया था। अहिंसा और सत्याग्रह अब तक अतीत की बातें बनकर रह गई थीं। किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि इक्कसवीं सदी के भारत में ये सब फिर से दोहराई जा सकती हैं।

अहिंसा और सत्याग्रह सिर्फ जुमले नहीं हैं, बल्कि आंदोलन के हथियार भी बन सकते हैं। देश की नई पीढ़ी ने जब यह सब होते अपनी खुली आंखों से देखा तो उसे आश्र्चय भी हुआ और उसमें इस अनोखे आंदोलन में शरीक होने का जज्बा भी भरने लगा जो धीरे-धीरे जुनून में बदल गया।

देश की आधी से अधिक आबादी युवा है। इस युवा वर्ग ने आजादी की कहानियां और उसके नायकों के बारे में इतिहास की किताबों में ही पढ़ा और सुना है। लेकिन अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब सत्याग्रह छेड़ा और उसे आजादी की दूसरी लड़ाई का नाम दिया तो लोगों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उन्हें लगा कि आजादी की पहली लड़ाई के वे गवाह तो नहीं बन सके थे, दूसरी लड़ाई का गवाह बनने का उनके समक्ष इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था। क्योंकि हर कोई भ्रष्टाचार से आजीज आ चुका है। उन्हें लगा कि यह शख्स तो उन्हीं की लड़ाई लड़ रहा है।

लोगों ने अन्ना की हर एक अपील का वैसा ही जवाब दिया जैसा आजादी के दिनों में देश गांधी के एक आवाज पर जवाब देता था। गांधी की ही तरह बिना खड्ग और बिना ढाल के उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आधी जंग जीत ली। उनके आंदोलन को देश ही नहीं, विदेशों में भी व्यापक समर्थन मिला। इस पूरे आंदोलन के दौरान किसी भी कोने में हिंसा की कोई घटना न होना उनके सत्याग्रह की सफलता की कहानी बयां करने के लिए काफी है।

मध्य पूर्व में आज जहां अस्थिरता का माहौल है और जंग के जरिए जीत हासिल करने की होड़ चल रही है वैसे में महात्मा गांधी की तरह इस दूसरे गांधी ने एक बार फिर विश्व को यह पाठ पढ़ाया कि अहिंसा में बहुत बड़ी ताकत होती है और उसके जरिए कोई भी जंग जीती जा सकती है। देर से ही सही, मगर कामयाबी जरूर हासिल होती है।

बहरहाल, अन्ना हजारे को दूसरा गांधी और उनके आंदोलन को आजादी का दूसरी लड़ाई मानने से इतिहासकारों और गांधीवादियों में एकराय नहीं हैं। अधिकांश का यही कहना है कि गांधी, गांधी रहेंगे और अन्ना, अन्ना ही रहेंगे।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर प्रवीण कुमार ने आईएएनएस से कहा, “अन्ना हजारे को दूसरा गांधी कहना उचित नहीं है। उन्हें छोटा गांधी जरूर कहा जा सकता है। इस छोटे गांधी को वास्तविक गांधी बनने के लिए लम्बा सफर तय करना होगा।”

गांधीवादी विचारक व लेखक कुमार प्रशांत ने आईएएनएस से कहा, “अन्ना हजारे को दूसरा गांधी कहे जाने से मैं सहमत नहीं हूं लेकिन असहमति जाहिर करने का भी समय नहीं है। दोनों की तुलना नहीं की जानी चाहिए। गांधी अपनी जगह है और उसे कोई नहीं ले सकता। अन्ना अपनी जगह हैं। क्योंकि तुलनाओं में पडें़गे तो असली मुद्दे पीछे छूट जाएंगे। हां, अन्ना हजारे ने एक बड़ी चीज जरूर खड़ी है।”

बहरहाल, अन्ना हजारे को दूसरा गांधी और उनके आंदोलन को आजादी की दूसरी लड़ाई कहे जाने को लेकर वाद और विवाद जारी रहेगा लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार करने से न तो इतिहासकार और न ही गांधीवादी गुरेज करते हैं कि आज के समय जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी अन्ना हजारे ने उसे साकार कर दिखाया है। रालेगांव सिद्धि से निकले इस संत ने वाकई में कमाल कर दिया है।

वैचारिक जागरूकता के विपरीत श्मशानी सन्नाटे के इस जमाने में अपने ही दिन दुनिया में मस्त रहने वालों को अन्ना ने सत्याग्रह की एक ताबीज पहनाने की कोशिश की जिसमें वह सफल भी रहे और देश के युवा यदि इस ताबीज को अपना ले तो वास्तविक स्वराज अब दूर नहीं। क्योंकि अन्ना ने इसे आधी जीत कहा है और उनका अगला चरण चुनाव सुधार से लेकर राइट टू रिकॉल और राइट टू रिजेक्ट है। वह यदि सफल होते हैं कि उन्हें दूसरा गांधी कहना कोई गलत नहीं होगा।

इक्कसवीं सदी के इस ‘गांधी’ के इस अहिंसापूर्ण आंदोलन की बदौलत देश में एक प्रभावी कानून या संस्था बन जाने से भ्रष्टाचार मिटे या न मिटे, लेकिन इतना तो तय है कि लोग अब जाग चुके हैं और अपना हक हासिल करने का अहिंसक तरीका उन्होंने अन्ना हजारे से सीख लिया है।

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