नई दिल्ली ।। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह ‘जी-20’ की फ्रांस के कान शहर में होने वाली बैठक में भाग लेने के लिए रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार की वकालत करते हुए कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए समन्वित पहल की जरूरत है।

कान में गुरुवार और शुक्रवार को जी-20 देशों के सम्मेलन में भाग लेने के अलावा प्रधानमंत्री फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी, ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन, आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड और यूरोपी संघ के नेताओं हरमैन वान रोम्पय और जोस मैनुएअल बरासो से मुलाकात करेंगे।

यूरोपीय देशों में सरकारी कर्ज संकट को ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए मुख्य चिंता’ करार देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “यह जरूरी है कि यूरोप और अन्य जगहों के संकट के समाधान के लिए फैसले जल्द लिए जाएं।”

कुछ दिन पहले हुई यूरोपीय देशों की दो बैठकों को बाजार में विश्वास स्थापित करने वाले कदम करार देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संकट के समाधान के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, “यूरोजोन एक ऐतिहासिक परियोजना है। भारत चाहेगा कि यूरोप समृद्ध हो क्योंकि यूरोप की समृद्धि में ही भारत की समृद्धि निहित है।”

उन्होंने कहा कि कान सम्मेलन के लिए जरूरी है वह वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मध्यावधि ढांचा गत मुद्दों को सुलझाते हुए मजबूत और समन्वित पहल का संकेत दे।

यूरोप की मंदी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था को अपनी चुनौतियों से निपटने के लिए एक प्रेरक वैश्विक आर्थिक परिदृश्य चाहिए। एक-दूसरे पर बढ़ती निर्भरता वाली आज की दुनिया में हमें अर्थव्यवस्था पर इसके संक्रमित प्रभावों और मुद्रास्फीति के दबाव को लेकर चिंतित होना पड़ेगा।”

गुरुवार और शुक्रवार को होने वाली दो दिवसीय बैठक में इसके अलावा अन्य मुद्दों पर भी चर्चा होने की उम्मीद है। जिसमें सदस्य देशों की वित्तीय नीतियों के आपसी आकलन और विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सुधार जैसे मुद्दे शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ने वैश्विक संस्थाओं के प्रशासन में सुधार की भी मजबूत जमीन तैयार की है जिसपर प्रभावी रूप से चर्चा होने की सम्भावना है।

इस बारे में उन्होंने कहा, “यह भारत के महत्व का विषय है और हम प्रभावी और प्रतिनिधित्वपूर्ण वैश्विक प्रशासन तंत्र के विकास और अंतर्राष्ट्रीय मैद्रिक और वित्तीय तंत्र में सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए दूसरों के साथ काम करेंगे।”

जी-20 का गठन 1999 में पूर्वी एशिया में आर्थिक संकट के बाद किया गया था। यह प्रारम्भ में वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर के स्तर पर गठित हुआ था। लेकिन 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद इसे शिखर स्तर का कर दिया गया।

वाशिंगटन, लंदन, पिट्सबर्ग, टोरंटो और सियोल में हुए पांच शिखर सम्मेलनों की तरह ही इस बार भी योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया प्रधानमंत्री के प्रमुख वार्ताकार होंगे। प्रधानमंत्री शनिवार सुबह स्वदेश लौट आएंगे।

भारत और जी-20 के इस बार के शिखर सम्मेलन के मेजबान फ्रांस के अतिरिक्त ब्राजील, अमेरिका, कनाडा, चीन, अर्जेटीना, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन तथा यूरोपीय संघ इसके सदस्य हैं।

वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में जी-20 के सदस्य देशों का योगदान 80 प्रतिशत है, जबकि उनकी जनसंख्या दुनिया की आबादी का दो-तिहाई है।

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