कान ।। जी20 देशों के सम्मेलन में जहां एक गैर सदस्य ग्रीस की समस्या चिंता का प्रमुख विषय बना रहा, वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार को सम्मेलन में कहा कि यूरोजोन संकट से निपटने के लिए तुरंत आवश्यक कदम उठाया जाएं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस संकट का असर उभरती अर्थव्यवस्था पर पड़ने नहीं दिया जा सकता।
प्रधानमंत्री ने जी20 देशों के नेताओं का ध्यान काले धन को दूसरे देशों में जमा किए जाने और कम कर वाले क्षेत्रों की ओर भी खींचा और कहा कि इस समस्या का अविलम्ब समाधान होना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने राहत योजना पर जनमत संग्रह कराने के एथेंस के फैसले का जिक्र करते हुए कहा, “जनमत संग्रह कराने के ग्रीस की सरकार के फैसले से समीकरण गड़बड़ा गया है।”
उन्होंने कहा, “इस समस्या के समाधान की मुख्य जिम्मेदारी हालांकि यूरोजोन के देशों की है, इसके बावजूद इस संकट का पड़ने वाला असर हम सभी के लिए चिंता का विषय है।”
ग्रीस के प्रधानमंत्री जॉर्ज पापारेंद्रू ने सोमवार को राहत योजना पर जनमत संग्रह कराने की घोषणा की थी।
विभिन्न स्रोतों से मिली खबरों के मुताबिक जनमत संग्रह का प्रस्ताव रद्द कर दिया गया है।
जनमत संग्रह की घेाषणा का असर देश के शेयर बाजारों पर भी पड़ा। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स सोमवार को कारोबार के दौरान 215 अंक नीचे चला गया, बाद में यह सम्भल कर कमोबेश पिछले सत्र के बंद स्तर के आसपास ही बंद हुआ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में विकास की गति घट गई है, इसके 7.6 फीसदी से आठ फीसदी के बीच रहने की उम्मीद है। इसके साथ ही महंगाई ऊंचे स्तर पर है और खाद्य महंगाई 12 फीसदी से ऊपर जा चुकी है।
उन्होंने कहा कि 2012-13 में विकास दर बढ़ाने और महंगाई कम करने की कोशिश रहेगी। इसके साथ ही आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ाने पर जोर रहेगा और वित्तीय घाटा कम करने की कोशिश रहेगी।
मनमोहन सिंह ने जी20 के सभी छह शिखर सम्मेलन में शिरकत की है।
विदेशों में जमा काले धन के मुद्दे पर सदस्य देशों का ध्यान खींचते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “कर चोरी और विदेश में काले धन को जमा करना एक गम्भीर समस्या है।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “जी20 को ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए इस मामले में एक स्पष्ट संदेश देना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “जी20 देशों को आपस में कर सम्बंधी सूचनाओं के मुक्त आदान प्रदान की पहल करनी चाहिए।”
जी-20 का गठन 1999 में पूर्वी एशिया में आर्थिक संकट के बाद किया गया था। यह प्रारम्भ में वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर के स्तर पर गठित हुआ था। लेकिन 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद इसे शिखर स्तर का कर दिया गया।
जी-20 के इस बार के शिखर सम्मेलन में भारत और मेजबान फ्रांस के अतिरिक्त ब्राजील, अमेरिका, कनाडा, चीन, अर्जेटीना, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन तथा यूरोपीय संघ इसमें शामिल हैं।
ग्रीस हालांकि जी20 का सदस्य नहीं है, फिर भी उसे सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है।
उधर शिखर सम्मेलन से पहले भारत ने कहा कि यूरोजोन संकट के समाधान के लिए अब तक किसी ने कोई औपचारिक अनुरोध नहीं किया है लेकिन वह संकट के समाधान के लिए जो भी जरूरी है उसे करने के लिए तैयार है।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा, “हालांकि कोई द्विपक्षीय अनुरोध नहीं मिला है, लेकिन हम सहायता करने के लिए तैयार है। हम इस संकट के पूरी दुनिया में फैलने को सहन नहीं कर सकते। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि भारत अभी तक इससे प्रभावित नहीं है।”
बुधवार को नई दिल्ली में केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने यूरोजोन की सहायता करने की बात कही थी। मुखर्जी ने कहा था, “पहले उन्हें ऋण चुकाने की क्षमता का आकलन करने दीजिए, समस्या के समाधान की कोशिश करने दीजिए इसके बाद हम अनुपूरक वित्तीय सहायता पर विचार करेंगे।”
इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार को जी-20 सम्मेलन शुरू होने से पहले ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका के नेताओं के साथ बैठक की। भारत सहित इन पांचों देशों के समूह को ‘ब्रिक्स’ नाम दिया गया है। इन नेताओं की बैठक का उद्देश्य जी-20 सम्मेलन में अपनी बातों को प्रभावी रूप से रखना है।
इससे पहले चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार की धीमी गति को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने जी-20 सम्मेलन से आशा लगा रखी है।
बुधवार को अपने फ्रांसीसी समकक्ष निकोलस सरकोजी के साथ मुलाकात के दौरान जिन्ताओ ने कहा, “सम्मेलन की मेजबानी करने के फ्रांसीसी पक्ष का चीन सक्रिय रूप से समर्थन करता है।”
सरकोजी ने कहा, “सम्मेलन का नतीजा सकारात्मक निकले इसके लिए फ्रांस, चीन के साथ समन्वय और सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार है।”
जिन्ताओ ने कहा कि यूरोप दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यूरोपीय देशों में सुधार के बिना दुनिया की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि कर्ज संकट के समाधान के लिए यूरोप के पास पूरी शक्ति और दक्षता है।”