नई दिल्ली ।। एशिया की दो महाशक्तियों और आपस में पड़ोसी चीन और भारत के बीच धीरे-धीरे तनाव बढ़ता ही जा रहा है। दोनों देशों के बीच तिब्बत और सीमा विवाद को लेकर रह-रहकर तनाव उभरते हैं, लेकिन इस बार किसी और कारण से विवाद पैदा हुआ है।

चीन ने कुछ महीने पहले भारत द्वारा दक्षिण चीन सागर में तेल की खोज पर आपत्ति जताई थी, जिसके जवाब में भारत ने कड़े शब्दों में चीन से कहा है कि वह पाक अधिकृत कश्मीर से दूर रहे, तो ही अच्छा है। भारत ने चीन से कहा है कि वह पीओके में अपनी हर तरह की गतिविधियों को जल्द से जल्द रोक दे।

गौरतलब है कि भारत की सरकारी तेल कंपनी ओएनजीसी और पेट्रो वियतनाम के बीच एक अनुबंध हुआ है, जिसके तहत ओएनजीसी वियतनामी समुद्र तट पर पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस स्रोतों की तलाश कर रही है। 

दक्षिण चीन सागर से जुड़े वियतनामी समुद्र तट के पास पेट्रोल और गैस निकालने के लिए ओएनजीसी बड़ी निवेश योजना पर काम कर रही है।

भारत ने चीन को जवाब देते हुए कहा है कि पाकिस्तान ने गैर कानूनी ढंग से भारतीय हिस्से पर कब्जा कर रखा है, ऐसे में चीन द्वारा पीओके में किसी भी तरह के गतिविधियों को अंजाम देना अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है।

भारत ने चीन के इस दावे को गलत कहा है कि जिस समुद्री इलाके पर भारतीय कंपनी वियतनामी कंपनी के साथ मिल कर काम करने जा रहा है, वह इलाका केवल और केवल चीन का है। भारत का कहना है कि यह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री इलाका है और भारत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक ही वहां पर पेट्रोल और गैस का दोहन कर रहा है।

भारत पाक अधिकृत कश्मीर में चीन के दो परियोजनाओं को लेकर खासा चिंतित है। एक काराकोरम हाईवे का अपग्रेडेशन और दूसरा डामर बाशा बांध का निर्माण। चीन भारत की इन आपत्तियों के जवाब में कहता रहा है कि वह इस इलाके में केवल आम नागरिक सुविधाओं को बढ़ाने और दुरूस्त करने के लिए ही कार्य कर रहा है। 

पिछले वर्ष विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने अपने चीनी समकक्ष से कहा था कि जिस तरह चीन के लिए तिब्बत और तवांग मुख्य मुद्दा है, उसी तरह भारत के लिए कश्मीर मुख्य मुद्दा है। विदेश मंत्री ने यह बात कश्मीर के लोगों को नत्थी वीजा दिए जाने के मुद्दे पर कही थी।

राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में पिछले महीने ही विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि सरकार पीओके में चीन द्वारा किए जा रहे आधारभूत संरचनाओं के निर्माण के बारे में जानती है और इस बारे में चीन को अवगत कराया जा चुका है। चीन को बताया जा चुका है कि पाक ने इस इलाके पर जबरन कब्जा किया हुआ है। ऐसे में चीन को यहां पर किसी भी तरह की गतिविधियों को अंजाम नहीं देना चाहिए।

अब देखने वाली बात यह होगी कि एशिया के इन दोनों महाशक्तियों में से कौन अपने कदम पीछे की ओर लेता है और कौन अपनी बातों पर डटा रहता है? बहरहाल, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की जटिलताओं, मान-सम्मान और दोनों देशों के स्वाभिमानी रवैये को देखते हुए लगता है कि चीन और भारत अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहेंगे।

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