काठमांडू ।। नेपाल के नवनियुक्त प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने देश की तमाम चुनौतियों के बीच सोमवार को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली।

राष्ट्रपति राम बरन यादव ने एक समारोह में उन्हें शपथ दिलाई।

भट्टराई अपनी वित्तीय कुशाग्रता और स्वच्छ छवि के लिए भले ही जाने जाते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें कई कठिन चुनौतियों से निपटना होगा।

नेपाल के पूर्व वित्त मंत्री भट्टराई को अब अपने सहयोगियों के साथ मंत्रियों के चयन के मुद्दे को सुलझाना होगा। तराई की पांच पार्टियों के मधेसी मोर्चा के समर्थन से ही भट्टराई रविवार को चुनाव में जीत हासिल कर पाए हैं। इसके अलावा उन्हें अपनी ही पार्टी के प्रमुख पुष्प कमल दहाल प्रचंड से भी निपटना होगा।

सत्ता बंटवारे की लड़ाई के कारण ही इसके पहले के तीनों प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण के समय अपने पूर्ण मंत्रिमंडल की घोषणा नहीं कर पाए थे। और उनकी सरकारों के गिरने में भी इसी कारण ने भूमिका निभाई थी।

सत्ता बंटवारे का यह विवाद इस बार भी कायम है। इसी कारण भट्टराई अपने मंत्रिमंडल में फिलहाल एक मंत्री ही शामिल कर पाए हैं। यह मंत्री मधेसी मोर्चे से है।

बिजय कुमार गच्छेदार को उपप्रधानमंत्री के साथ ही गृह मंत्री बनाया गया है। इसके पहले गृह मंत्रालय माओवादियों के पास था। अफवाह कुछ ऐसी है कि इस सरकार में चार उपप्रधानमंत्री होंगे।

माओवादी नेता चंद्र प्रकाश गजरेल ने कहा कि अन्य मंत्रियों के बारे में पार्टी में तथा सहयोगी दलों के साथ विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिया जाएगा। तराई की पांच पार्टियों के मोर्चे से 11 मंत्रियों को शामिल किए जाने का वादा किया गया है।

दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी पार्टियों- क्रमश: नेपाली कांग्रेस व कम्युनिस्टों – ने कहा है कि वे विपक्ष में बैठेंगी। लेकिन इन दलों ने शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया।

भट्टराई नेपाल के 35वें प्रधानमंत्री बने हैं। रविवार के मतदान में उन्हें 340 मत हासिल हुए थे। उन्होंने नेपाली कांग्रेस के रामचंद्र पौडल को पराजित किया था। पौडल को 235 मत प्राप्त हुए थे।

जहां एक जातीय संगठन ने मतदान वाले दिन आम बंद रखा था, वहीं शपथ ग्रहण के दिन दो अन्य संगठनों ने क्षेत्रीय बंद रखा।

लिम्बुवान राज्य परिषद द्वारा आहूत बंद के कारण भारत की सीमा से लगे पूर्वी नेपाल के नौ जिले बंद रहे।

नए प्रधानमंत्री को देश में कानून-व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में सुधार तथा नेपाल से निवेशकों का पलायन रोकने जैसे मुद्दों पर राष्ट्र को भरोसा दिलाना होगा।

आईटीसी की सहयोगी इकाई, सूर्या नेपाल द्वारा अशांत पूर्वी नेपाल में स्थित अपने परिधान कारखाने को बंद करने के निर्णय से निवेशकों में नकारात्मक संदेश गया है।

भट्टराई को चुनाव से पूर्व तैयार किए गए शांति कार्यक्रम को भी 45 दिनों के भीतर लागू करना होगा। इसमें माओवादियों की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को भंग किया जाना और उसमें शामिल लगभग 20,000 सैनिकों का पुनर्वास शामिल है।

इन सब झंझावातों के बीच संसद की मियाद बुधवार को समाप्त हो जाएगी। सरकार को इस अवधि के भीतर कोई नया संविधान लागू करना होगा, अन्यथा पतन का सामना करना पड़ेगा। अब इन तमाम चुनौतियों से भट्टराई कैसे निपटते हैं, यह आने वाला समय बताएगा।

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