नई दिल्ली ।। भारत ने शुक्रवार को म्यांमार में विकास परियोजनाओं के लिए एक प्रमुख कूटनीतिक पहल के तहत 50 करोड़ डॉलर ऋण की घोषणा की और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया। यह कूटनीतिक पहल इसलिए खास है क्योंकि चीन के साथ भी म्यांमार के घनिष्ठ सम्बंध हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने म्यांमार के राष्ट्रपति यू थेन सेन के साथ कई मुद्दों पर बातचीत की। इसमें दोनों देशों के बीच आर्थिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के मुद्दे भी शामिल हैं।

थेन सेन चार दिवसीय भारत यात्रा पर बुधवार को यहां पहुंचे। इस वर्ष के प्रारम्भ में म्यांमार में असैन्य सरकार निर्वाचित होने के बाद थेन सेन का पहला भारत दौरा है। मनमोहन सिंह के साथ बातचीत से पहले राष्ट्रपति भवन में थेन सेन का भव्य स्वागत किया गया।

द्विपक्षीय सम्बंधों में एक बड़ा कदम बढ़ाते हुए मनमोहन सिंह ने म्यांमार के लिए 50 करोड़ डॉलर के ऋण की घोषणा की। यह ऋण सिंचाई सहित कई परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा। इसके अलावा भारत ने लगभग 30 करोड़ डॉलर का ऋण कई अधोसंरचना परियोजनाओं के लिए पहले ही दिया था। इन परियोजनाओं में रेलवे, परिवहन, विद्युत पारेषण लाइनें और तेल रिफाइनरी के विकास शामिल थे।

भारत ने क्षमता विकास में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए भी कई पहलों की घोषणा की है। इसमें येजिन में उन्नत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा केंद्र की स्थापना, मांडले में एक चावल जैव उद्यान तथा एक सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना शामिल है।

खास बात यह कि मनमोहन सिंह ने लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना को लेकर उठाए गए कदम के लिए थेन सेन की प्रशंसा की और इस लोकतांत्रिक बदलाव को एक समग्र और व्यापक तरीके से और मजबूत बनाने के लिए सभी आवश्यक सहयोग का प्रस्ताव दिया।

बातचीत के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया है, “यह दौरा म्यांमार में मार्च 2011 में नई सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद वहां के राष्ट्राध्यक्ष के पहले भारत दौरे को प्रस्तुत करता है। म्यांमार की नई सरकार एक खुले और लोकतांत्रिक ढांचे की ओर बढ़ने का प्रतीक है।”

एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में दोनों पक्ष आतंकवाद की घातक समस्या से निपटने के लिए अपने सुरक्षा बलों के बीच प्रभावी सहयोग एवं समन्व बढ़ाने पर सहमत हुए हैं।

संयुक्त बयान में कहा गया है, “दोनों नेताओं ने इस आश्वासन को दोहराया है कि दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए अपनी धरती के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देंगे।”

प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत में सीमा प्रबंधन को चुस्त करने की प्रक्रियाओं पर प्रमुखता से चर्चा हुई।

दोनों नेताओं ने कई अधोसंरचना परियोजनाओं पर भी चर्चा की। इन परियोजनाओं के जरिए म्यांमार और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के बीच सम्पर्क बढ़ेगा।

दोनों पक्षों ने भारत द्वारा वित्तपोषित 12 करोड़ डॉलर लागत वाले सिट्वे बंदरगाह के निर्माण में तेजी लाने का भी फैसला किया। दोनों पक्ष इस बंदरगाह को जून 2013 तक चालू करना चाहते हैं। इस बंदरगाह के चालू हो जाने के बाद देश के पूवरेत्तर राज्यों से दक्षिणपूर्व एशिया के लिए व्यापार आसान हो जाएगा।

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