सिडनी ।। खान-पान और जीवनशैली में अंतर से पता चलता है कि दक्षिण एशियाई व यूरोपीय लोगों को एक ही जैसी अवस्थाओं में इलाज के लिए दवाओं की अलग-अलग खुराकों की आवश्यकता क्यों होती है।
सिडनी विश्वविद्यालय की फार्मेसी में डॉक्ट्रेट की अंतिम वर्ष की छात्रा विद्या परेरा ने अपने अध्ययन में पाया कि दक्षिण एशिया के लोगों के लिए दवा की कम खुराक ही काफी होती है क्योंकि उनमें दवाओं के पाचन में हिस्सा लेने वाले सीवाईपी1ए2 एंजाइम की मात्रा कम होती है।
विश्वविद्यालय से जारी एक वक्तव्य के मुताबिक, “पत्तागोभी, फूलगोभी और ब्रोक्कोली को सीवाईपी1ए2 की मात्रा बढ़ाने वाली सब्जियां माना जाता है।”
परेरा ने बताया, “दक्षिण एशियाई लोगों में सीवाईपी1ए2 एंजाइम की मात्रा कम होती है। इसकी वजह इस एंजाइम की क्रियाशीलता रोकने वाले जीरा व हल्दी जैसे मसालों के इस्तेमाल से इन सब्जियों को पकाया जाना है।”
उन्होंने कहा, “यह ऐसा पहला अध्ययन है जिसमें दक्षिण एशियाई लोगों में सीवाईपी1ए2 एंजाइम की सक्रियता देखी गई। किसी दवा की अच्छे असर और उसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए उसकी आवश्यक सही खुराक ज्ञात कर पाना मुश्किल है।”
यह अध्ययन 166 दक्षिण एशियाई लोगों और 166 यूरोपीय लोगों पर किया गया था। प्रतिभागियों को कैफीन की एक-एक गोली देकर उनमें सीवाईपी1ए2 एंजाइम का स्तर ज्ञात किया गया और चार घंटे बाद लार के नमूनों में इसकी सक्रियता देखी गई।
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एंड्रयू मैकलैचेन का कहना है कि दक्षिण एशिया में आबादी तेजी से बढ़ रही है लेकिन फिर भी अभी इस बारे में बहुत कम ज्ञात हो सका है कि इस शोध के परिणामों को लोगों की अलग-अलग आबादी के साथ कैसे जोड़कर देखा जाए।