धर्मशाला ।। तिब्बत की निर्वासित सरकार का कहना है कि विकास के नाम पर चीन द्वारा अवैज्ञानिक तरीके से सड़कों और रेलमार्गो के निर्माण की वजह से तिब्बती पठार के पर्यावरण और पारिस्थतिकी तंत्र को काफी नुकसान हो रहा है।

तिब्बत सरकार की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है, “तिब्बत के पारिस्थतिकी संतुलन को बिगाड़ने के लिए विशेषतौर पर मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं।” तिब्बती सरकार द्वारा जारी ‘ए सिंथेसिस ऑफ रिसेंट साइंस एंड तिब्बतन रिसर्च ऑन क्लाइमेट चेंज’ रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक तिब्बती पठार का तापमान दूसरी बार औसत रूप से वैश्विक स्तर पर पहुंच गया है जिसके परिणामस्वरूप यहां के जलवायु परिवर्तन और विशाल चारागाहों में तेजी से परिवर्तन हो रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी प्रशासन ने तिब्बत के देहाती खनाबदोशों को चारागाहों के कम होने और पारिस्थतिकी असंतुलन के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तिब्बती पठार को शोषण मुक्त क्षेत्र बनाने से तिब्बतियों के साथ-साथ विश्व समुदाय को भी लाभ पहुंचेगा। यह रिपोर्ट को निर्वासित तिब्बती प्रधानमंत्री लोबसोंग संजय ने पिछले सप्ताह जारी की थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तिब्बती पठार की सुरक्षा और शोषण मुक्त अंतर्राष्ट्री वेधशाला क्षेत्र बनाने के लिए इस क्षेत्र के दशों के बीच पानी के बंटवारे के लिए एक संधि की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में वर्तमान आर्थिक मॉडल के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों में कमी कर पर्यावरण नीतियों को लागू किए जाने की सिफारिश की गई है।

अंतर्राष्ट्रीय सम्बंध एवं सूचना विभाग के पर्यावरण एवं विकास विभाग के प्रमुख तेनजिंग नोरबू ने कहा, “हमें उम्मीद है कि इस रिपोर्ट को तिब्बती समुदाय और हिमालयी क्षेत्र के लिए शोध कार्यो के लिए रखी जाएगी।”

तिब्बत के धर्म गुरू दलाई लामा भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा ने इस वर्ष जनवरी में उड़ीसा में कहा था कि जलवायु परिवर्तन वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी समस्या है और तिब्बत का पठार पहले ही पहले ही इसके प्रभाव का सामना कर रहा है।

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