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भारत के उत्तराखंड राज्‍य में स्थित केदारनाथ एक पवित्र हिंदू तीर्थधाम है। हिमालय में मंदाकिनी नदी के पास समुद्रतट 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ प्रमुख चार धामों में से एक है। दुनियाभर के हिंदू भक्‍तों और श्रद्धालुओं में केदारनाथ मंदिर बहुत लोकप्रिय है।

बर्फ से ढकी हिमालय की खूबसूरत पहाडियों में स्थित केदारनाथ धाम के दर्शन करने हर साल लाखों की संख्‍या में श्रद्धालु आते हैं। यहां का मौसम बहुत ठंडा और बर्फीला रहता है और इस वजह से मंदिर के कपाट सिर्फ अप्रैल माह के अंत से लेकर नवंबर तक खुले रहते हैं। केदारनाथ मंदिर, भगवान शिव के 12 ज्‍योर्तिलिंगों में से भी एक है।

2018 में कब खुलेंगे केदारनाथ मंदिर के कपाट?

साल 2018 में 19 अप्रैल को केदारनाथ मंदिर के कपाट खुल रहे हैं। 19 अप्रैल से आप अपने परिवार के साथ भोलेनाथ के दर्शन करने जा सकते हैं।

कब बंद होते हैं केदारनाथ मंदिर के द्वार?

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केदारनाथ मंदिर के कपाट सर्दी के मौसम में बंद रहते हैं। पिछले साल 2017 में 21 अक्‍टूबर, 2017 को दीवाली के बाद सर्दी के मौसम में केदारनाथ के कपाट श्रद्धालुओं और भक्‍तों के लिए बंद कर दिये गए थे।

कैसे पहुंचे केदारनाथ

गौरीकुंड से 16 किमी लंबे ट्रैक को पार करने के बाद ही केदारनाथ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस खड़ी चढ़ाई को पार करने के लिए आप घोड़ा या पालकी भी किराए पर ले सकते हैं।

हरिद्वार, ऋषिकेष और उत्तराखंड के कई क्षेत्रों से गौरी कुंड जुड़ा हुआ है। निकटतम एयपारेर्ट देहरादून का जौली ग्रांट हवाई अड्डा है जबकि समीपतम रेलवे स्‍टेशन ऋषिकेष है।

केदारनाथ मंदिर के बारे में रोचक बातें

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  • केदारनाथ का मौसम इतना ठंडा होता है कि यहां आप आसानी से नहीं पहुंच सकते है। इसका रास्‍ता बहुत कठिन है और कभी-कभी यहां बादल फटने की वजह से मार्ग अवरूद्ध भी हो जाता है।
  • भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर को कभी कोई हानि नहीं पहुंच सकती है और इस बात का प्रमाण साल 2013 में आई भयंकर बाढ़ से ही मिल जाता है। इस बाढ़ की वजह से लाखों श्रद्धालु काल के मुंह में समा गए थे जबकि मंदिर को कोई भारी नुकसान नहीं हुआ था।
  • बाढ़ के कारण कई लोगों के शव आज भी मंदिर के आसपास के स्‍थानों में जमीन में गढ़े हुए हैं और इस वजह से अब यहां नकारात्‍मक शक्तियों का डेरा बसा रहता है।
  • इस मंदिर की स्‍थापना कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। किवदंती है कि अपने ही महाभारत युद्ध में अपने ही भाईयों का वध करने के पश्‍चात् पाप बोध से मुक्‍त होने के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे। किंतु भगवान शिव पांडवों से रूष्‍ट होकर अंर्तध्‍यान हो गए। गुप्‍तकाशी में भगवान शिव ने बैल रूप में पांडवों को दर्शन दिए। तब पांडवों की भक्‍ति से प्रसन्‍न होकर शिव अपने वास्‍तवित रूप में आए। इसके पश्‍चात् पांडवों ने केदारनाथ मे शिवलिंग की स्‍थापना की। तभी से केदारनाथ में भगवान शिव की पूजा की जाती है।

केदारनाथ में त्रिकोणीय शि‍वलिंग की पूजा की जाती है। मान्‍यता है कि यहां पर सच्‍चे दिल से प्रार्थना करने पर सभी पापों से मुक्‍ति मिल जाती है।

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