पिछले कुछ दिन हमारे देश और मीडिया में ‘सद्भावना की टोपी’ पहनाने का खेल काफी चर्चा में रहा। सभी अख़बारों और टीवी चैनलों पर सद्भावना की टोपी का खेल तीन दिनों तक जारी था।

भारतीय जनता पार्टी के जाने-माने नेता और गुजरात के मौजूदा मुख्यमंत्री जो अपने आप को विकास पुरूष के रूप में भी प्रसिद्ध करने में बड़े गंभीर रूप से जुटे हुए है, इन दिनों सबको टोपी पहनाने के खेल में काफी व्यस्त चल रहे है।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ना केवल गुजरात की जनता को बल्कि देश की जनता को, विपक्षी पार्टियों को, अपने विरोधियों को तथा अपनी खुद की पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी और भाजपा के नेताओँ को भी सद्भावना की टोपी पहनाने में बखूबी  लगे हुए है।

दरअसल शुरूआत में तो कोई भी मोदी के इस सद्भावना उपवास को समझ नहीं पाया, लेकिन जैसे-जैसे भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर मोदी का नाम मीडिया में सामने आने लगा वैसे-वैसे सबको समझ में आने लगा की मोदी सद्भावना की टोपी पहनाने का खेल बड़ी ही चालाकी से खेल रहे है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और भाजपा की ओर से ‘पीएम इन वेटिंक’ कहे जाने वाले नेता लाल कृष्ण आडवाणी भी शुरूआत में मोदी का टोपी पहनाने का खेल समझ नहीं पाए और जोश और भावनाओं में बह कर मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के पद का उम्मीदवार घोषित कर बैठे, लेकिन जैसे ही आडवाणी साहब को सद्भावना की टोपी का खेल अपनी रथ यात्रा के रास्ते में बाधा दिखाई पड़ने लगा तो आडवाणी साहब ने अपने आप को तो पीछे किया लेकिन कमान से निकला हुआ तीर वापस नहीं आता वैसे ही वाणी  से निकले हुए शब्द भी वापस नहीं आते। आडवाणी साहब इस वजह से काफी गमगीन हो गए हैं और पिछले दो-एक दिनों से उन्होंने मीडिया से काफी दूरियां बनाए हुए है।

वही अगर बात मोदी साहब के विरोधियों की करे या उनकी विपक्षी पार्टियों की तो मोदी साहब सद्भावना और उपवास के टोपी के खेल को बखूबी खेल गए और सभी विरोधियों के कद से अपने कद को काफी बड़ा साबित करने में कामियाब हुए हैं। नरेन्द्र मोदी को ये बखूबी आभास हो चुका है कि फिलहाल तो गुजरात में उनकी कुर्सी सुरक्षित है और उनकी सरकार भी काफी महफूज है। तभी तो मोदी साहब ने अब राजपथ की रास्ते की ओर कूच की है और अपना दायरा पूरे देश में फैलाने के लिए मीडिया या यून कहें की पब्लिक रिलेशन का बहुत ही अच्छा इस्तेमाल किया है। मुझे याद है आडवाणी साहब की रथ यात्रा की घोषणा के दो-तीन दिनों के भीतर ही कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री के पद के लिए राहुल गांधी का नाम प्रोजेक्ट किया गया था और राहुल साहब के नाम की चर्चा मीडिया में आने के दो-एक दिन बाद ही मोदी साहब सद्भावना की टोपी का खेल लेकर सामने आ गए और राहुल साह सामने आ गए और राहुल साहब का कद छोटा दिखाने में कामियाब भी हुए। दरअसल वैसे तो राहुल गांधी की छवि तो काफी अच्छा और सेकूलर दिखाने में कांग्रेस काफी कामियाब रही है, लेकिन अन्ना हजारे और भ्रष्टाचार के मुद्दे के कारण राहुल साहब की छवि को काफी नुकसान पहुंचा है या यून कहें कि उनका भी असली चेहरा जनता के सामने आ गया है। राहुल भी पब्लिक रिलेशन के खेल को अच्छी तरह खेलना जानते है और इस बार नरेन्द्र मोदी ने राहुल के ही हथकंडें को आजमा कर उनके ही कद को छोटा साबित कर दिया।

‘सद्भावना की टोपी’ के खेल में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोद ने खेल-ही-खेल में मीडिया को भी टोपी पहनाने की कोशिश की। उपवास की घोषणा और उपवास शुरू होने के पहेल दिन तक तो मीडिया ने जान-अनजाने में मोदी साहब के टोपी के खेल में फस्ती दिखी, लेकिन थोड़े समय के बाद ही मीडिया की समझ में सद्भावना की टोपी का खेल समझ में आने लगा और मीडिया ने टोपी पहनाने से इंकार किया और सद्भावना उपवास पर सभी द्रष्टिकोणों से चर्चाओं का दौर शुरू किया।

नरेन्द्र मोदी सभी धर्मों और सारी जनता को भी शुरूआत में सद्भावना की टोपी पहनाने में कामियाब हो ही रहे थे कि अचानक एक टोपी ने उनकी सचाई को भी सबके सामने ला कर रख दिया। एक मुस्लिम मौलाना साहब के द्वारा एक सांकेतिक टोपी पहनाने के दौरान मोदी साहब ने मुस्लिम टोपी पहनाने से इंकार कर दिया। जबकि उन्होंने बाकी कई धर्मों की सांकेतिक पगडियां और चिन्हों को अपने सर पर सजाया है।

मोदी शुरु में सभी धर्मों को सेकूलर होने की टोपी पहनाने में कामियाब हो गए थे लेकिन मुस्लिम टोपी पहनने से इंकार करने पर सभी को ब्राह्म भी टूट गया।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा में विपक्ष की नेता और पीएम पद की दौड़ की उम्मीदवार सुष्मा स्वराज और भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकेया नायडू को भी टोपी पहनाने में कामियाब रहे और तभी तो सुष्मा स्वराज नें नरेन्द्र मोदी को राजपथ पर आने की सलह दी और नायडू साहब ने उन्हें भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया।

आखिर में एक बात कहना चाहूंगा गुजरात के मुख्यमंत्री ने सद्भावना उपवास के जरिए अपनी प्रधानमंत्री बनने कि इच्छा जाहिर की साथ ही अपने कद को पार्टी के कद से भी बड़ा जताने की कोशिश की है। मोदी ने इस उपवास के खेल के जरिए भाजपा की अंदरूनी कल्ह को भी जगजाहिर कर दिया है। मोदी के उपवास के कारण सबसे ज्यादा बेचैनी वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को हुए है।

अब ये देखना दिलचस्प होगा की भारतीय जनता पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव जीत भी पाएगी या अपनी अंदरूनी कल्ह के चलते विपक्ष की ही कुर्सियों पर विराजमान हो पाएगी।

[ कुलवीर]

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