नई दिल्ली ।। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले के आरोपी पूर्व केंद्रीय दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा की जमानत याचिका यह कहकर खारिज कर दी कि एक लोक सेवक होने के नाते उन्हें ऊंचे दर्जे की ईमानदारी और दायित्व का निर्वाह करना चाहिए था, क्योंकि उन पर जनता का भरोसा था।

न्यायमूर्ति वी.के. शाली ने फैसला सुनाते हुए कहा, “मैं बेहुरा के वकील की इस दलील से सहमत नहीं हूं कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय या इस अदालत द्वारा पूर्व में पारित इस तरह के आदेशों के आधार पर याचिकाकर्ता स्वत: जमानत के लाभ का हकदार है।”

अदालत ने कहा कि इसी मामले में अन्य आरोपियों को मिली जमानत से तुलना के सिद्धांत पर याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी जा सकती।

ज्ञात हो कि बेहुरा को पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए.राजा और उनके पूर्व निजी सचिव आर.के. चंदोलिया के साथ 2जी मामले में दो फरवरी को गिरफ्तार किया गया था। बेहुरा पर आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप तय किए गए थे।

बेहुरा ने यह कहते हुए अदालत से जमानत की मांग की कि इस मामले से सम्बद्ध 12 आरोपियों को पहले ही जमानत पर रिहा किया जा चुका है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा गिरफ्तार 14 आरोपियों में से बेहुरा और राजा ही दो ऐसे हैं, जो अभी तक सलाखों के पीछे हैं।

बेहुरा के वकील अमन लेखी ने इसके पहले न्यायमूर्ति शाली से कहा कि घोटाले के कथित लाभार्थी जमानत पर रिहा हो चुके हैं। “रिश्वत देने और लेने वाले भी जमानत पर रिहा हो चुके हैं।”

बेहुरा ने कहा, “समता और निष्पक्षता के सिद्धांत के आधार पर मैं रिहा होने का अधिकार रखता हूं।”

लेखी ने अदालत में यह भी आरोप लगाया कि सीबीआई, निजी क्षेत्र के कर्मचारियों और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के आधार पर आरोपियों के साथ भेदभाव बरत रही है।

लेखी ने कहा कि आपराधिक विश्वासघात का आरोप सभी आरोपियों पर लागू होता था, सिर्फ लोक सेवकों पर नहीं।

लेखी ने यह भी कहा कि राजनीतिक सम्बंध रखने वाले अन्य आरोपियों के विपरीत सेवानिवृत्त लोकसेवक के पास सबूत के साथ छेड़छाड़ करने के लिए राजनीतिक बल और धन बल नहीं होता।

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