नई दिल्ली ।। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एक विशेष अदालत ने जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी की उस याचिका पर अपना फैसला शनिवार को सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम की कथित संलिप्तता स्थापित करने के लिए गवाहों से पूछताछ करने की मांग की थी।

तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री चिदम्बरम की इस मामले में कथित भूमिका स्थापित करने के लिए सीबीआई के अधिकारियों सहित गवाहों से पूछताछ करने सम्बंधी स्वामी की याचिका को संज्ञान में लेते हुए विशेष न्यायाधीश ओ.पी. सैनी ने कहा, “न्यायालय शिकायतकर्ता की याचिका पर अपना फैसला आठ दिसम्बर को सुनाएगा।”

स्वामी ने यह कहते हुए चिदम्बरम को मामले में पक्ष बनाने की मांग की है कि स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण का निर्णय संयुक्त रूप से चिदम्बरम और तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने लिया था। राजा फिलहाल इस मामले में तिहाड़ जेल में कैद हैं।

स्वामी ने न्यायालय से कहा, “पी. चिदम्बरम के खिलाफ भी आरोप तय किए जाने चाहिए। उसके लिए उचित प्रक्रिश शुरू की जानी चाहिए।”

स्वामी ने कहा कि न्यायालय के आदेश के बाद सीबीआई द्वारा उन्हें मुहैया कराए गए आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि चिदम्बरम और राजा के बीच चार बैठकें हुई थीं। उन्हीं बैठकों में स्पेक्ट्रम की कीमतें 2001 के स्तर पर रखने का निर्णय लिया गया था।

स्वामी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान का भी जिक्र किया, जिसमें सिंह ने कहा था कि तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री ने राजा से मशविरा किया था और दोनों ने स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण पर एक सम्मत फार्मूले पर काम किया था।

स्वामी ने कहा, “राजा ने एक फाइल और एक प्रेस टिप्पणी में यह बात दर्ज की थी कि तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री ने विदेशी कम्पनियों-दुबई की एटिसालेट और नार्वे की टेलीनॉर-को लाइसेंस बेचने की अनुमति दी थी, जबकि दोनों कम्पनियां केंद्रीय गृह मंत्रालय के जांच के दायरे में थीं।”

स्वामी ने कहा, “स्वान टेलीकॉम और यूनीटेक ने एटिसालेट और टेलीनॉर को क्रमश: अपनी-अपनी हिस्सेदारियां बेची थी। जबकि वे केंद्रीय गृह मंत्रालय के जांच के दायरे में थीं और मंत्रालय ने सिफारिश की थी कि इन दोनों कम्पनियों को देश में कारोबार करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”

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