नई दिल्ली ।। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में एक नया मोड़ आ गया है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय से प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई एक टिप्पणी में कहा गया है कि यदि तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अपने ‘रुख पर अड़ जाते’ तो 2008 में स्पेक्ट्रम की नीलामी हो सकती थी।

इस टिप्पणी का पता सूचना का अधिकार कानून के जरिए प्रधानमंत्री कार्यालय से पूछे गए एक सवाल से चला। सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने प्रधानमंत्री कार्यालय में सूचना का अधिकार कानून के जरिए सवाल पूछा था। ऐसा साफ तौर पर लगता है कि इस टिप्पणी को केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने देखा है। टिप्पणी वित्त मंत्रालय के उप सचिव ने तैयार की थी और इसे 25 मार्च को प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया था।

टिप्पणी के मुताबिक 30 जनवरी 2008 को पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा से मुलाकात में चिदम्बरम ने कहा था कि “फिलहाल वह स्पेक्ट्रम के लिए प्रवेश शुल्क और आय के बंटवारे की पुरानी व्यवस्था की समीक्षा करने के पक्ष में नहीं हैं।”

टिप्पणी के मुताबिक वित्त सचिव ने भी फरवरी 2008 में कहा था कि दूरसंचार विभाग अभी भी नीलामी का रास्ता चुन सकता है। इस समय तक स्पेक्ट्रम आवंटन पर सहमति बन चुकी थी। वित्त सचिव ने कहा था कि दिशा-निर्देश के प्रावधान के मुताबिक दूरसंचार विभाग आवंटन रद्द कर सकता है।

टिप्पणी में कहा गया कि यदि वित्त मंत्रालय नीलामी पर अड़ जाता, तो दूरसंचार विभाग आवंटन रद्द करने के प्रावधान का उपयोग कर सकता था।

राजनीतिक रूप से यह टिप्पणी ऐसे समय में सामने आई है, जब जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में कथित तौर पर चिदम्बरम की 2जी मामले में मूल्य निर्धारण में संलिप्तता साबित करने वाले दस्तावेज सौंपे हैं।

स्वामी ने बुधवार को न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति ए.के. गांगुली की पीठ के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत किए। यह पीठ स्वामी की याचिका की सुनवाई कर रही है, जिसमें स्वामी ने चिदम्बरम की भूमिका की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने की मांग की है।

स्वामी के दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने पर विपक्ष ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने चिदम्बरम के इस्तीफे की मांग की।

भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, “हम हमेशा से यह बात कह रहे थे। चिदम्बरम पूरी तरह से शक के दायरे में हैं। हम पहले दिन से ही कह रहे थे कि यदि चिदम्बरम ने राजा के फैसले को रद्द कर दिया होता तो अभी स्थिति कुछ और होती।”

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