नई दिल्ली ।। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में यूपीए सरकार बुरी तरह फंसती नजर आ रही है। आरटीआई के तहत एक नई चिट्ठी सामने आई है, जिससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ही स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने का अधिकार मंत्रियों के समूह [जीओएम] से छीनकर टेलिकॉम मंत्रालय को दिया था।

इससे पहले 2जी स्पेक्ट्रम मामले में वित्त मंत्रालय द्वारा भेजी गई एक चिट्ठी के सामने आने से वर्तमान गृहमंत्री पी. चिदंबरम की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अब जबकि एक और चिट्ठी सामने आई है और इसमें लिखी बातों से सीधे प्रधानमंत्री ही फंसते नजर आ रहे हैं, तो ऐसे में कांग्रेस के लिए स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई।

2जी घोटाले पर पहले से ही उठ रहे तमाम सवालों और गृहमंत्री का बचाव करने में कांग्रेस स्वयं को असमर्थ पा रही है, ऐसे में मनमोहन का इसके फांस में उसके लिए शुभ संकेत नहीं हैं।

सन् 2006 में तत्कालीन टेलिकॉम मंत्री दयानिधि मारन द्वारा लिखी गई इस चिट्ठी से साफ है कि मनमोहन सिंह ने मंत्रियों के समूह [जीओएम] के टर्म्स ऑफ रेफरेंस को बदलने में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था। इस बदलाव के कारण स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने का अधिकार जीओएम से निकलकर टेलिकॉम मंत्रालय के पास चला गया। इसके बाद 1.76 लाख करोड़ रुपये के 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का रास्ता साफ हो गया, जिसे अंजाम दिया मारन के बाद दूरसंचार मंत्रालय संभालने वाले ए. राजा ने और संभवत: कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ लोगों ने।

अंग्रेजी अखबार ‘ डीएनए ‘ में छपी खबर के मुताबिक, मारन ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर जीओएम के टर्म्स ऑफ रेफरेंस को उनके मुताबिक बनाने की अपील की थी। साथ ही स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने का अधिकार भी जीओएम की बजाय टेलिकॉम मंत्री को देने का आग्रह किया था।

सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने आरटीआई के तहत इस मामले के सारे गोपनीय दस्तावेज हासिल किए हैं। इससे पता चलता है कि 1 फरवरी 2006 को मारन से मिलने के बाद पीएम ने अतिरिक्त स्पेक्ट्रम जारी करने और स्पेक्ट्रम की कीमतों पर विचार करने में जीओएम की भूमिका खत्म कर दी।

मारन ने 28 फरवरी 2006 को प्रधानमंत्री को लिखे गोपनीय पत्र में लिखा, ‘ आपको याद होगा कि 1 फरवरी 2006 की मुलाकात में हमने रक्षा मंत्रालय द्वारा स्पेक्ट्रम खाली करने के मुद्दे पर गठित जीओएम पर चर्चा की थी। आपने मुझे आश्वस्त किया था कि जीओएम के टर्म्स ऑफ रेफरेंसर टेलिकॉम मंत्रालय की इच्छा के मुताबिक तैयार होंगे। यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जीओएम के सामने जो विषय रखे गए हैं, वे बहुत व्यापक हैं। मेरे अनुसार यह मंत्रालय के कामों में अतिक्रमण है। इसलिए इसमें हमारी सिफारिशों के आधार पर बदलाव किया जाए।’

चिट्ठी के साथ ही मारन ने जीओएम के लिए कार्यवाही के बिंदुओं का नया प्रस्ताव भी भेजा। पहले जीओएम को छह बिंदुओं पर चर्चा के लिए कहा गया था। गौरतलब है कि इनमें स्पेक्ट्रम की कीमत का निर्धारण भी शामिल था। मारन ने प्रस्तावित एजेंडे में से उसे हटा दिया। सिर्फ चार विषयों को ही प्रस्तावित कार्यवाही के बिंदुओं में शामिल किया। यह सभी रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली कराने से जुड़े थे।

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