नई दिल्ली ।। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले। उनके इस मुलाकात को विवादास्पद 2जी नोट से जोर कर देखा जा रहा है, जिसके बारे में पता चला था कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के एक अधिकारी के बार-बार आग्रह करने के बाद वित्त मंत्रालय से यह नोट पीएमओ को भेजा गया था।

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक मुलाकात का कार्यक्रम पहले से तय था, हालांकि मुलाकात के दौरान हुई बातचीत का ब्योरा नहीं मिल पाया है।

इस बीच कांग्रेस ने 26 सितम्बर को भेजे नोट पर किसी तरह के विवाद से इंकार किया है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को इस बात की पुष्टि की कि केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के आदेश पर 2जी से सम्बंधित नोट उसे भेजा था।

केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मुखर्जी ने सितम्बर माह में न्यूयार्क में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात में कहा था कि देश लौटने पर वह इस मामले को देखेंगे। इसके बाद उन्होंने पीएमओ को नोट भेजा था।

अधिकारी ने आईएएनएस से कहा, “वित्त मंत्री ने लिखा था कि पीएमओ के एक अधिकारी द्वारा बार-बार आग्रह करने के कारण उन्होंने वह नोट भेजा।”

नोट में कहा गया था कि 2जी पर औपचारिक नोट भेजने की पूरी कवायद जनवरी 2011 में मंत्रिमंडलीय सचिव द्वारा शुरू की गई थी और आर्थिक मामलों के विभाग ने वित्त मंत्रालय के विचार को लिखित रूप दिया था।

अधिकारी ने कहा, “प्रधानमंत्री को बताया गया था कि न तो वह (वित्त मंत्री) और न ही उनके मंत्रालय ने अपनी ओर से इस नोट को भेजा था।”

वित्त मंत्री ने यह भी कहा था कि मंत्रालय यह नोट भेजने के पक्ष में नहीं था, लेकिन पीएमओ के अधिकारी के बार-बार आग्रह करने के कारण नोट भेजना पड़ा।

कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि नोट में वही लिखा गया है, जो दिसम्बर 2003 से फरवरी 2011 के बीच हुआ है .. यदि नोट में कुछ भी आपत्तिजनक है तो इसका फैसला संयुक्त संसदीय समिति पर छोड़ देना चाहिए, जिसे 1998 से 2009 के बीच स्पेक्ट्रम आवंटन के मुद्दे को देखना का अधिकार दिया गया है।

इस विवादित नोट में कहा गया था कि यदि गृह मंत्री पी. चिदम्बरम जोर देते तो 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन नहीं होता, बल्कि नीलामी होती। चिदम्बरम तब केंद्रीय वित्त मंत्री थे।

इस नोट के सामने आने के बाद चिदम्बरम की तीखी आलोचना हुई और मुखर्जी के साथ कुछ खटास भी पैदा हुई थी। चिदम्बरम ने पद छोड़ने का भी प्रस्ताव रखा था।

कांग्रेस पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप करने के बाद हालांकि खटास दूर हुई।

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