नई दिल्ली ।। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव ए. बी. बर्धन ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर देश की राजनीति को दो ध्रुवीय करने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि उनकी यह कोशिश कभी सफल नहीं होगी।

लोकसभा के अगले चुनाव में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के बैनर तले एक गठबंधन खड़ा किया जाएगा, जिसमें समान विचारधारा वाले दल एकजुट होकर कांग्रेस और भाजपा की मुखालफत करेंगे। 

बर्धन ने आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “कांग्रेस और भाजपा मिलकर देश की राजनीति को दो ध्रुवीय करने की साजिश रच रहे हैं। हम इसी के खिलाफ हैं। हम इसे सम्भव नहीं होने देंगे। देश में बहुत विविधता है और क्षेत्रीय दलों की अपनी-अपनी अहमियत है। हम समान सोच व विचारधारा वाले क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर एक मोर्चा खड़ा कर रहे हैं।”

यह पूछे जाने पर कि इस मोर्चे में कौन-कौन से क्षेत्रीय दल शामिल हो सकते हैं, उन्होंने कहा, “बीजू जनता दल (बीजद) और तेलूगु देशम पार्टी (तेदेपा) हमारे साथ हैं। शेष वामपंथी दल तो हैं ही, और भी कुछ राजनीतिक दल हैं जो इससे जुड़ने को तैयार हैं। इस दिशा में प्रयास चल रहा है।”

इसे तीसरा मोर्चा कहे जाने और पूर्व में इसके हश्र की याद दिलाए जाने पर बर्धन कहते हैं, “आप इसे तीसरा मोर्चा कह सकते हैं लेकिन हमारा मकसद एलडीएफ खड़ा करना है। जो मुद्दों पर आधारित होगा। हम चाहेंगे, जो राजनीतिक दल इन मुद्दों से सहमत होंगे, वे इस मोर्चे में शामिल हों। इसके लिए उन्हें किसानों, मजदूरों और आम आदमी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर हमारे साथ मैदान पर उतरकर संघर्ष करना होगा।”

उन्होंने कहा, “जहां तक पूर्व के अनुभवों की बात है तो वह हमारी भूल थी। हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह एक लम्बी प्रक्रिया है। हमारा प्रयास जारी है और जारी रहेगा।”

विभिन्न वामपंथी दलों के एक पार्टी में विलय के बारे में पूछे जाने पर बर्धन ने कहा, “अन्य वामपंथी दलों के साथ हमारा मुद्दों पर आधारित समर्थन है। सभी अलग-अलग राजनीतिक दल हैं और उनके अपने-अपने मुद्दे हैं। मुद्दों के हिसाब से हम एक मंच पर आते हैं। जहां तक विलय की बात है तो हमारा संयुक्त उद्देश्य कांग्रेस और भाजपा का विरोध करना है।”

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, “वामपंथी दलों के दबाव के कारण संप्रग का पहला कार्यकाल तो ठीक-ठाक रहा लेकिन उसका दूसरा कार्यकाल निरंकुश हो गया है। यह अंतर लोग महसूस भी कर रहे हैं। आज भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। इस सरकार का जनता से नाता टूटा हुआ है। आम आदमी के नाम पर सत्ता में आने वाली कांग्रेस का लोगों के दुखों और उनकी परेशानियों से कोई सरोकार नहीं है। लोगों के प्रति उसमें संवेदनशीलता नहीं है।”

बर्धन ने कहा, “इस सरकार में ही गहरे मतभेद हैं। वे सरकार चलाने में पूरी तरह असमर्थ हैं और निर्णय लेने में भी असमर्थ हैं। यह सरकार कोई भी मामला हल नहीं कर पाई, चाहे वह भूमि अधिग्रहण का मुद्दा हो या लोकपाल का या फिर खाद्य सुरक्षा का। अभी भी कुल 33 विधेयक लम्बित हैं। विवादास्पद मुद्दों पर इस सरकार की कोई अपनी राय ही नहीं है।”

लोकपाल विधेयक के बारे में उन्होंने कहा, “इस बारे में हमारी राय बिल्कुल स्पष्ट है। हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री भी इसके दायरे में हों और निचली श्रेणी के अधिकारियों को भी इसके दायरे में रखा जाना चाहिए। न्यायपालिका के बारे में हमारी राय है कि इसके लिए एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग होना चाहिए और इसके लिए राष्ट्रीय न्यायिक विधेयक अलग से होना चाहिए। न्यायपालिका को लोकपाल से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।”

लोकपाल के लिए गांधीवादी अन्ना हजारे द्वारा बार-बार अनशन की धमकी देने के बारे में पूछे जाने पर बर्धन ने कहा, “कोई खुद को बादशाह ही क्यों ने समझे लेकिन कानून तो संसद ही बनाएगी। संसद सवरेपरि है। हम चाहते हैं कि मजबूत और प्रभावी लोकपाल विधेयक बने। अन्ना हजारे ने जो मश्विरा दिया है उसे भी शामिल किया जाना चाहिए।”

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के अब तक के कार्यकाल के बारे में पूछे जाने पर बर्धन ने कहा कि लोगों को अभी से अंतर दिखने लगा है। ममता का झूठ अब धीरे-धीरे सबके सामने आ रहा है। उनके अन्य झूठ भी जल्दी ही लोगों के सामने आ जाएंगे। लोगों को समय मिलना चाहिए ताकि वे यह अनुभव कर सकें कि उन्होंने जिसे चुना है उसका रवैया उनके प्रति कैसा है। नक्सलियों ने जल्द ही यह अनुभव कर लिया। प्रदेश की जनता को अब धीरे-धीरे इसका अनुभव होने लगा है।

ममता और नक्सली की कथित साठगांठ के बारे में वह कहते हैं, “यह एकदम सत्य है कि ममता ने सिर्फ वामपंथी दलों को पराजित करने के लिए और चुनावी फायदे के लिए नक्सलियों का साथ दिया और उनका समर्थन लिया। ऐसे में नक्सली जब ताकतवर हो गए और उनके माथे पर बैठ गए तब ममता को होश आया। इसी का नतीजा है किशन जी की मौत।”

वामपंथी दलों की खत्म होती प्रांसगिकता के बारे में उन्होंने कहा, “हर आंदोलन में उतार-चढ़ाव आता है। हम कभी अच्छी स्थिति में थे लेकिन आज हमारी वह स्थिति नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी कोई प्रासंगिकता नहीं रही। जब आप लोगों से दूर होने लगते हैं तो लोग खुद आपसे दूर जाने लगते हैं। इसका आसान तरीका यही है कि आप लोगों से दूर न हों। उनसे जुड़े रहें। उनके लिए संघर्ष करें।”

राजनीतिक दलों की प्रासंगिकता का आकलन उसके चुनावी प्रदर्शन से किए जाने की बर्धन ने सख्त मुखालफत की। उनका कहा है कि आकलन पार्टियों के क्रियाकलापों और उसकी गतिविधियों के आधार पर किया जाना चाहिए। चुनावी प्रदर्शन को आधार मानकर यदि राजनीतिक दलों की मजबूती या उनकी प्रासंगिकता का आकलन किया जाए तो यह उचित नहीं है।

 

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