नई दिल्ली ।। केंद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने साफ कर दिया है कि सरकार सोशल नेटवर्किं ग साइट्स के साथ न हस्तक्षेप करना चाहती है और न उन पर प्रतिबंध ही लगाना चाहती, लेकिन आपत्तिजनक सामग्री पर निगरानी रखने के उनके प्रस्ताव पर शुरू बहस शांत होने का नाम नहीं ले रही है।

कानूनी विशेषज्ञों ने सरकार को ऐसा करने के खिलाफ आगाह किया है और इसके बदले मौजूदा कानूनों के बेहतर क्रियान्वयन का सुझाव दिया है। कई न्यायविद, आपत्तिजनक सामग्री पर रोक के लिए सोशल नेटवर्किं ग साइट्स पर नजर रखने के सिब्बल के प्रस्ताव के खिलाफ हैं।

सिब्बल हालांकि खुद वकील हैं, लेकिन उनके वकील साथियों में से किसी का कहना है कि “हमें उनके प्रति निष्पक्ष होना चाहिए” तो किसी ने कहा है “शायद भारत में भी तहरीर चौक जैसी क्रांति की जरूरत है”।

मानवाधिकारों की वकालत के लिए मशहूर वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने आईएएनएस से कहा, “इससे (सिब्बल का प्रस्ताव) ऐसा लगता है कि देश में भी अरब देशों की तरह क्रांति की जरूरत है, क्योंकि सिब्बल की टिप्पणी से जाहिर होता है कि भारत, अन्य अरब तानाशाहों की तरह अपने खुद के लोगों की जासूसी करने और इंटरनेट की सामग्रियों पर प्रतिबंध लगाने की ओर बढ़ रहा है।”

गोंसाल्वेस ने कहा कि प्रतिबंध सही तरीका नहीं है। उन्होंने कहा, “यदि इंटरनेट पर मौजूद कोई सामग्री भारतीय कानून का उल्लंघन करती है, तो सरकार सम्बंधित व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है।”

वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कहा कि सिब्बल के बारे में निष्पक्ष बात कहनी चाहिए। वह एक नियामक की आवश्यकता को रेखांकित कर रहे हैं, वह किसी सरकारी नियंत्रण की वकालत नहीं कर रहे हैं। 

रामचंद्रन ने कहा कि सरकारी प्रतिबंध के बदले सोशल नेटवर्किं ग साइट्स पर आपत्तिजनक सामग्री पाए जाने की सूरत में कार्रवाई करने और हस्तक्षेप करने के लिए एक स्वतंत्र नियामक व्यवस्था होनी चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के एक अन्य अधिवक्ता आई.एच. सैयद ने आईएएनएस से कहा, “मीडिया की आजादी अनुल्लंघनीय है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।”

अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने भी इंटरनेट पर निगरानी के खिलाफ आगाह किया है, लेकिन दोनों ने भारत का जिक्र नहीं किया है।

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