भोपाल ।। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुए गैस हादसे के 27 वर्षो बाद भी पीड़ित अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गैस पीड़ितों के संगठनों ने अब तीन दिसम्बर से बेमियादी रेल रोको आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है।

गैस पीड़ितों के लिए संघर्षरत पांच संगठनों-कार्बाइड के खिलाफ बच्चे, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा, भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एण्ड एक्शन- ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 27 वर्षो बाद भी गैस पीड़ितों को अपने हक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एण्ड एक्शन के सतीनाथ षाडंगी ने कहा कि भोपाल हादसे के लिए जिम्मेदार डॉव केमिकल कंपनी लंदन ओलम्पिक की प्रयोजक है। डॉव की हिस्सेदारी पर पूर्व ओलम्पियंस के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा विरोध दर्ज कराना स्वागत योग्य है। 

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान ने भोपाल गैस त्रासदी के लिए डॉव केमिकल को जिम्मेदार ठहराते हुए लंदन ओलम्पिक में उसकी हिस्सेदारी का विरोध किया है। ऐसे में गैस पीड़ित अपेक्षा करते हैं कि वह सर्वोच्च न्यायालय में लम्बित सुधार याचिका में मौतों तथा बीमार लोगों का सही आंकड़ा पेश करेंगे। 

षाडंगी ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि हादसे में लगभग 25 हजार लोग मौत के शिकार हो चुके हैं। वहीं स्थाई रूप से बीमार मरीजों की संख्या लाखों में है। लेकिन राज्य सरकार सिर्फ 5,295 मौतें मान रही है। इतना ही नहीं उसने 93 फीसदी मरीजों को अस्थाई रूप से क्षतिग्रस्त माना है।

संगठनों ने यूनियन कार्बाइड की सुरक्षा सम्बंधी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मिथाइल आइसो सायनेट गैस की वजह से होने वाली बीमारी, इलाज के बाद भी बनी रहती है। 

संगठनों ने कहा कि प्रोफेसर श्रीनिवास मूर्ति की रिपोर्ट बताती है कि है कि 27 वर्ष बाद भी मानसिक विकृतियों के शिकार 80 फीसदी मरीज अपनी बीमारी से नहीं उबर पाए हैं। 

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