नई दिल्ली ।। राष्ट्रीय राजधानी में छठ पूजा की तैयारी पूरी कर ली गई है। सोमवार को व्रतियों ने खरना व्रत रखा। मंगलवार को डूबते सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा और बुधवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ इस पर्व का समापन होगा। छठ पूजा के लिए यहां यमुना नदी के तटों की सफाई की गई है तथा अन्य इंतजाम किए गए हैं।

दिल्ली सरकार के अनुसार लगभग 40 लाख लागों के यमुना तटों पर पहुंचने की संभावना है।

दिल्ली के स्वास्थ्य एवं राजस्व मंत्री ए.के.वालिया ने कहा, “दिल्ली नगर निगम छठ पूजा के लिए यमुना तटों की सफाई करवा रहा है। सफाई कार्य संतोषप्रद है, कुछ घाटों में सुधार की जरूरत है।”

छठ पर्व छठ, षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन है और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।

छठ लोक आस्था का पर्व है जो सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।

यह पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। छठ व्रत के सम्बंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।

लोकपरंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का सम्बंध भाई-बहन का है। लोक मातृ षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।

यह पर्व चार दिनों का है। व्रती पहले दिन सेंधा नमक और घी से बनी कद्दू की सब्जी और अरवा चावल प्रसाद के रूप में खाते हैं। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। इस दिन को खरना कहते हैं। रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं।

इस पर्व में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। इस दौरान लहसुन, प्याज खाना वर्जित है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई है, जैसे पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना। इसके अलावा रोशनी की व्यवस्था पर काफी खर्च किया जाता है।

छठ घाटों पर व्रती एवं परिवार के अन्य लोग रातभर जागरण करते हैं। इस दौरान कहीं-कहीं आर्केस्ट्रा या अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होता है।

व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।

कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लडुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।

कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।

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