हरिद्वार/नई दिल्ली ।। मेहुल झावेरी अमेरिका के शिकागो में ओरेकल कम्पनी में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं, लेकिन वह इन दिनों हरिद्वार में काम कर रहे हैं। संजय अग्रवाल भी इंदौर में एक टेली कम्युनिकेशन कम्पनी में प्रबंध निदेशक के रूप में कार्यरत हैं, लेकिन इन दिनों वह भी हरिद्वार में कुछ इसी तरह का काम कर रहे हैं। इसकी वजह आर्थिक मंदी नहीं है, बल्कि दोनों का यह विश्वास है कि समाज को बदलने में अपनी ओर से कुछ योगदान देना चाहिए।

झावेरी और अग्रवाल उन 28,000 स्वयंसेवकों में हैं, जो युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य की जन्मशती मनाने के लिए छह नवम्बर से शुरू होने वाले समारोह की तैयारियों के लिए यहां पहुंचे हैं। पांच दिन तक चलने वाले इस समारोह में 80 देशों से करीब 50 लाख श्रद्धालु शामिल होंगे।

झावेरी इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि आचार्य की शिक्षा से इंसानों के व्यक्तित्व पर सकारात्मक असर पड़ेगा। यही वजह है कि वह अपनी नौ साल की बेटी और छह साल के बेटे को लेकर यहां पहुंचे हैं और उन्होंने उनका दाखिला ‘शांतिकुंज’ नगर क्षेत्र के अधीन चलने वाले एक स्कूल में कराया है।

शांतिकुंज नगर क्षेत्र की शुरुआत गायत्री आंदोलन के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने की थी, जो इस दर्शन पर काम करता है कि ‘आवश्यकताएं सीमित करना ही आनंद का मार्ग है।’ झावेरी के परिवार में चार सदस्य हैं और इस दौरान उन्हें यहां केवल 3,000 रुपये मिलेंगे, लेकिन वह यहां बेहतर जीवन को लेकर आश्वस्त हैं।

उनके मुताबिक, “अमेरिका में रह रहे दोस्तों एवं परिजनों को पहले लगा कि मेरे साथ कुछ गलत हुआ है, लेकिन अब उनमें से कुछ जानते हैं कि मैं क्या कर रहा हूं.. पिता के तौर पर जब मैं जानता हूं कि मेरे बच्चों के लिए अच्छा क्या है तो मैं उन्हें किसी भी कीमत पर वह दूंगा।”

वहीं, अक्सर शांतिकुंज आने वाले अग्रवाल का कहना है कि यहां आने से उनका काम अच्छा चलता है। उनके अनुसार, “मेरी कम्पनी के निदेशक भी शांतिकुंज का दौरा करते हैं और आचार्य के उपदेशों का अनुपालन करते हैं। मैंने अपनी कम्पनी में युगऋषि के दर्शन को लागू करने की कोशिश की है। इसी का नतीजा है कि हम एक बड़े परिवार के रूप में काम करते हैं।”

अग्रवाल के अनुसार, आचार्य ने अपनी जिंदगी लोगों के कल्याण और दुनिया के नैतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण को परिष्कृत करने के लिए समर्पित कर दी। उन्होंने अध्यात्म के पुनर्जीवन, प्राचीन एवं आधुनिक विज्ञान के रचनात्मक एकीकरण और मौजूदा समय की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में धर्म की प्रासंगिकता का मार्ग दिखाया। उनका व्यक्तित्व एक संत और आध्यात्मिक वैज्ञानिक का मिला-जुला रूप था।

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