नई दिल्ली ।। भारत और अफगानिस्तान ने मंगलवार को सामरिक सहयोग को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता दोनों देशों के बीच वार्षिक सुरक्षा सम्वाद स्थापित करने एवं पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद से लड़ाई में सहयोग को विस्तार देगा।

इसके अलावा दोनों देशों ने खनिज, तेल एवं गैस क्षेत्र से जुड़े सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए।

भारत की दो दिनों की यात्रा पर आए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ आतंकवाद, आर्थिक सम्बंध और क्षेत्रीय अखंडता सहित कई द्विपक्षीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की।

दोनों नेताओं के बीच वार्ता में हालांकि आतंकवाद का मुद्दा छाया रहा। करजई ने हाल ही में हुई पूर्व राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की हत्या सहित अन्य आतकंवादी हमलों में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की संलिप्तता के सबूत भारत के साथ साझा किए।

शांति एवं विकास में अपना सहयोग जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए दोनों नेताओं ने व्यापक सामरिक सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता दोनों देशों को अपने सम्बंधों को कई क्षेत्रों में व्यापक आयाम देने के मार्ग प्रशस्त करता है।

करजई के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, “भारत अफगानिस्तान के लोगों के साथ खड़ा होगा क्योंकि वे वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय बलों की वापसी के बाद अपने प्रशासन एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं।”

मनमोहन सिंह ने कहा, “राजनीति, सुरक्षा सहयोग, व्यापार एवं आर्थिक सहयोग, क्षमता निर्माण, शिक्षा, सामाजिक, सांस्कृतिक और आपसी सम्बंधों के क्षेत्र में हमारे भविष्य के सहयोग के लिए यह समझौता एक संस्थागत ढांचा तैयार करता है।”

यह सामरिक सहयोग समझौता एक सहयोग परिषद की स्थापना की परिकल्पना करता है जिसकी अध्यक्षता दोनों देशों के विदेश मंत्री करेंगे और यह परिषद सामरिक भागीदारी के समन्वय के लिए एक केंद्रीय इकाई के रूप में काम करेगा।

परिषद वार्षिक बैठक करेगी और विभिन्न मुद्दों पर बने संयुक्त कार्य समूहों से उनकी राय लेगी।

समझौते के तहत दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों के बीच एक वार्षिक सुरक्षा सम्वाद कायम करने और विदेश मंत्रियों के बीच वार्षिक सम्मेलनों और बैठकों की परिकल्पना की गई है।

इनके अलावा भारत ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए क्षमता निर्माण के तहत अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करने की पेशकश की है।

उल्लेखनीय है कि करजई की भारत यात्रा ऐसे समय हो रही है जब पाकिस्तान के सम्बंध अफगानिस्तान और अमेरिका के साथ बुरे दौर में हैं।

यही नहीं, करजई ने रब्बानी की हत्या के बाद तालिबान के साथ सुलह प्रक्रिया एवं प्रयासों की रणनीति के बारे में भी भारत को जानकारी दी। जबकि भारत ने अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं के लिए उसे दो अरब डॉलर देने का वादा किया है।

दोनों देशों ने अपने आर्थिक सम्बंधों को और प्रगाढ़ करने के लिए खनन एवं हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

आतंकवाद पर चर्चा करते हुए न तो मनमोहन सिंह ने और न ही करजई ने पाकिस्तान का नाम लिया लेकिन दोनों नेताओं ने क्षेत्र में आतंकवाद के बारे में अप्रत्यक्ष रूप से इस्लामाबाद का हवाला दिया और बाहरी हस्तक्षेप को हराने की जरूरत पर बल दिया।

मनमोहन सिंह ने कहा, “आतंकवाद हमारे समूचे क्षेत्र को चुनौती दे रहा है और इसके घातक प्रभाव से कोई भी देश अछूता नहीं रह सकता।” उन्होंने कहा, “अफगानिस्तान के लोगों ने काफी कठिनाइयां झेली हैं। उन्हें शांति में रहने और बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उन्हें अपना भविष्य खुद चुनने का हक है।”

अपने देश की नई संसद के निर्माण में मदद के लिए भारत को धन्यवाद देते हुए करजई ने कहा, “दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर करना महत्वपूर्ण है।”

करजई ने खासकर भारत की उस पहल का उल्लेख किया जिसके तहत भारत ने अफगानिस्तान के 2000 छात्रों को अगले पांच सालों के लिए छात्रवृत्ति देने की मंजूरी दी है। उन्होंने कहा कि भारत की इस घोषणा से अफगानिस्तान के छात्र काफी खुश हैं।

करजई ने कहा, “आतंकवाद और चरमपंथ के जरिए यह क्षेत्र जिस खतरे का सामना कर रहा है अफगानिस्तान उसे समझता है। हमारे देशों के नागरिकों और निर्दोष लोगों के खिलाफ आतंकवाद और चरमपंथ का इस्तेमाल एक राष्ट्रीय नीति के रूप में किया जा रहा है।”

करजई ने भारत को अपना ‘एक पक्का दोस्त’ बताया और अफगानिस्तान के पुनर्निमाण में सहयोग के लिए उन्होंने नई दिल्ली की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “अफगानिस्तान की कठिनाइयों के बारे में समझ रखने के लिए मैं प्रधानमंत्री का आभारी हूं।”

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