कोलकाता ।। शीर्ष नक्सली नेता चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद और एम. कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी की मौत के बीच भले ही करीब 17 महीने का अंतराल है। लेकिन दोनों घटनाओं में स्पष्ट समानताएं हैं।

आजाद और किशनजी, दोनों आंध्र प्रदेश से थे और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे। आजाद पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता था और किशनजी पिछले वर्ष एक मुठभेड़ में घायल होने तक पश्चिम बंगाल में यह भूमिका निभाता था। 

आजाद एक पत्रकार हेमचंद्र पांडे के साथ आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले में एक और दो जुलाई, 2010 की रात पुलिस के हाथों मारा गया था। 

पुलिस ने दावा किया था कि आजाद मुठभेड़ में मारा गया था, जबकि मानवाधिकार संगठनों ने मुठभेड़ की कहानी खारिज कर दी थी। मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने आजाद और पांडे को महाराष्ट्र के नागपुर से हिरासत में लिया और दोनों को आदिलाबाद के जंगल में लाया गया और वहीं दोनों की हत्या कर दी गई।

पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले के बुरीशोले गांव में गुरुवार रात को किशनजी का गोलियों से छलनी शव सुरक्षा एजेंसियों ने पत्रकारों को दिखाया। सुरक्षाकर्मियों ने दावा किया कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल और राज्य सशस्त्र पुलिस बल के जवानों के साथ 30 मिनट तक चली मुठभेड़ में किशनजी मारा गया। 

लेकिन नक्सलियों और मानवाधिकार संगठनों ने मुठभेड़ की कहानी खारिज कर दी है। भाकपा (माओवादी) की पश्चिम बंगाल समिति के सदस्य आकाश ने कहा है कि लोगों ने किशनजी को पकड़े जाते देखा। 

आकाश ने कहा, “किशनजी को पहले पकड़ा गया और उसके बाद क्रूरता के साथ मार डाला गया। यह फर्जी मुठभेड़ थी।”

क्रांतिकारी तेलुगू कवि और नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले पी. वरवरा राव ने शुक्रवार को आरोप लगाया था कि शीर्ष नक्सली नेता किशनजी को पश्चिम बंगाल में पुलिस हिरासत में यातना दी गई और उसके बाद मार डाला गया। 

मानवाधिकार संगठन, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स के अध्यक्ष सच्चिदानंद बनर्जी ने आईएएनएस से कहा, “पुलिस के साथ काम करने के अपने लम्बे अनुभव के आधार पर हमें लगता है कि यह फर्जी मुठभेड़ थी।”

दोनों घटनाओं के समानता के संदर्भ में फिर लौटें तो आजाद की मौत उस समय हुई थी, जब केंद्र सरकार और नक्सलियों के बीच बातचीत के लिए सम्भावित संघर्ष विराम का एक व्यापक प्रारूप तैयार हो रहा था। आजाद केंद्र सरकार के साथ बातचीत के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत था। 

किशनजी की मौत ऐसे समय हुई है, जब राज्य सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकार राज्य के नक्सली नेतृत्व के साथ बातचीत कर रहे थे, ताकि ममता बनर्जी सरकार के साथ औपचारिक बातचीत का रास्ता तैयार हो सके।

यद्यपि किशनजी अभी तक बातचीत से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़ा था, लेकिन राजनीतिक गलियारों के लोग महसूस करते हैं कि राज्य के नक्सली नेतृत्व के साथ वार्ताकारों की बातचीत किशनजी की मंजूरी के बगैर नहीं हुई होगी, क्योंकि पश्चिम बंगाल में पार्टी के पूरे अभियान का वह प्रभारी था।

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