नई दिल्ली ।। दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को ‘वोट के लिए नोट’ मामले में जेल में बंद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के पूर्व सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी एवं दो पूर्व सांसदों की जमानत याचिका पर सुनवाई 13 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी। यह प्रकरण 2008 का है।
विशेष न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल ने कुलकर्णी एवं दो पूर्व सांसदों फग्गन सिंह कुलस्ते एवं महावीर सिंह भगोरा की जमानत याचिकाओं पर दो घंटे तक चली बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
सहगल ने कहा, “सभी जमानत याचिकाओं पर सुनवाई 13 अक्टूबर को होगी।”
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि भाजपा से जुड़े तीनों नेता भ्रष्टाचार को उजागर करना चाहते थे और उन्होंने सचेतक जैसी भूमिका निभाई थी। वकील ने कहा, “जुलाई 2008 में लोकसभा में विश्वास मत के दौरान सरकार की जीत सुनिश्चित करने के लिए सांसदों की खरीद-फरोख्त की गई जिसे उनके मुवक्किलों ने उजागर करने का प्रयास किया था।”
उन्होंने कहा, “संसद में नोट लहराए जाने की घटना भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए महज एक स्टिंग आपरेशन थी।”
सरकारी वकील राजीव मोहन ने बचाव पक्ष के वकील की दलील को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यदि इन आरोपियों की मंशा खरीद-फरोख्त को उजागर करना था तो यह बात भाजपा नेता अरुण जेटली की जानकारी में पहले से क्यों नहीं थी।
उन्होंने जेटली के बयान का हवाला देते हुए कहा कि भाजपा नेता को 22 जुलाई 2008 की इस घटना से पहले इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मोहन ने कहा, “क्या यह सम्भव है कि जो सांसद भ्रष्टाचार को उजागर करने की मंशा रखते हों वे पार्टी अलाकमान को इस बारे में अंधेरे में रखें। जेटली के बयान के अनुसार वह इस बारे में पूर्णत: अनभिज्ञ थे। इसलिए यह समूचा प्रकरण एक षड्यंत्र था।”
जमानत के लिए जोर देते हुए बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि आरोपपत्र दाखिल हो चुका है और जांच पूरी हो चुकी है, इसलिए आरोपियों के सबूत से छेड़छाड़ करने, गवाहों पर दबाव डालने या भागने का सवाल ही नहीं उठता।
लेकिन सरकारी वकील ने यह कहते हुए इस दलील का विरोध किया कि अपराध अत्यंत गम्भीर और चिंताजनक है, इसलिए जमानत नहीं दी जानी चाहिए।